जिले में 1,182 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र, 225 सामुदायिक वन अधिकार पत्र और 18 सामुदायिक वन संसाधन पत्र जारी

जांजगीर-चांपा, 07 सितंबर, 2021/ छत्तीसगढ़ जनजाति बाहुल्य राज्य है। राज्य की कुल जनसंख्या का 32 प्रतिशत से अधिक संख्या जनजातियों की है। प्रदेश में निवासरत अनुसूचित जनजातियां जल, जंगल, जमीन से नैसर्गिक तथा परंपरागत रूप से सदियों से जुड़ी रही है और अपनी सांस्कृतिक पहचान के रूप में इनकी रक्षा और संरक्षण भी करती रहीं है। परंपरागत रूप से अपनी आजीविका और निवास के रूप में वन भूमि पर पीढ़ियों से काबिज है। ऐसे स्थानीय समुदायों को काबिज भूमि पर मान्यता देने के लिए और उनके अधिकारों को अभिलिखित करने के उद्देश्य से वन अधिकार अधिनियम लागू किया गया है।
काबिज भूमि का मालिकाना हक मिलने लगा –
     मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप आदिवासियों को उनके जमीन का हक दिलाने के लिए वन अधिकार पत्र दिया जा रहा है। वन अधिकार पत्र मिलने से वनवासियों को काबिज भूमि का मालिकाना हक मिलने लगा है जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा है और हौसले बुलंद हुए हैं।
    जांजगीर-चांपा जिले की भौगोलिक स्थितियों के अनुसार बलौदा, सक्ती, मालखरौदा और डभरा ब्लाक में आदिवासियों का निवास है। जिले में वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत 1,182 व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र (692.084 हेक्टेयर) प्रदान किया गया है। सामुदायिक वन अधिकार पत्र के तहत -225 आवेदन स्वीकृत कर 13,598.12 हेक्टेयर वन भूमि आबंटित किया गया। सामुदायिक वन संसाधन पत्र के 18 आवेदन स्वीकृत कर 1,816.486 हेक्टेयर वन भूमि आबंटित किया गया।
नदी, नालों के पुनर्जीवन के कार्यों को प्राथमिकता –
     राज्य सरकार द्वारा वनांचल क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए कई निर्णय लिए गए हैं। वनवासियों को वन अधिकार कानून का लाभ दिलाने के लिए वन अधिकार मान्यता पत्र की समीक्षा, वन क्षेत्रों में किसानों को सिंचाई सुविधा के लिए नदी, नालों के पुनर्जीवन के कार्यो को प्राथमिकता दी जा रही है।
जल, जंगल और जमीन आदिवासियों की परंपरा एवं संस्कृति –
     जल, जंगल और जमीन आदिवासियों की परंपरा एवं संस्कृति का अटूट हिस्सा ही नहीं बल्कि उनकी आजीविका का साधन भी है। आदिकाल से वनों पर निर्भर आदिवासी समाज इसके सानिध्य में ही अपना घरौंदा बनाकर जीवनयापन करते रहें है। विलासिता से दूर, प्रकृति की गोद में अपने अस्तित्व को बचाकर रखा और साथ ही साथ प्रकृति का संरक्षण भी किया। जान जोखिम में डालने से लेकर जान गंवाने तक वनवासी कभी अपना घरौंदा छोड़कर नहीं भागे। वनोपज हो या अन्य संसाधन, अपने जीवनयापन के लिए ही उन संसाधनों का उपयोग करते आ रहें है। कभी भी प्रकृति का शोषण नहीं किया, क्योंकि वे प्रकृति को अपना मानते हैं। खुद को इस धरती का वंशज मानने के साथ पेड़-पौधों को देवता मानकर उनकी पूजा करते हैं। वे वनों पर अपना अधिकार समझते हैं।
मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लिनिक योजना – 
      आदिवासी अंचलों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए हाट बाजारों में मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लिनिक योजना और महिलाओं और बच्चों में कुपोषण को दूर करने के लिए गर्म पौष्टिक भोजन देने मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान संचालित किए जा रहे हैं। इन योजनाओं की सफलता को देखते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की 150वीं जयंती पर इस योजना को पूरे प्रदेश में लागू किया गया।

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