शहीद सैनिकों को समर्पित पितृ मोचनी श्रीमद भागवत कथा का 15 वां दिन।
मानव शरीर में मन, मस्तिष्क, मोह, प्रेम, द्वेष व अहंकार सब विद्यमान हैं : डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
भगवान के आते ही अहंकार सो जाता है व माया के आते ही जागता है।
कुरुक्षेत्र, 12 अक्तूबर : भगवान श्री कृष्ण के मुखारविंद से उत्पन्न गीता की जन्मस्थली, तीर्थों की संगम स्थली एवं धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के अखंड गीता पीठ शाश्वत सेवाश्रम में चल रही देश के लिए शहीद हुए सैनिकों को समर्पित पितृ मोचनी श्रीमद भागवत कथा के 15 वें दिन व्यासपीठ से महामंडलेश्वर डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज ने बताया कि मनुष्य शरीर गोकुल के समान इन्द्रियों का समूह है। इस मानव शरीर में मन, मस्तिष्क, मोह, प्रेम, द्वेष व अहंकार सब विद्यमान हैं। उन्होंने कथा में भगवान श्री कृष्ण जन्म के उपरांत की लीलाओं पर चर्चा करते हुए मानव शरीर को भगवान श्री कृष्ण का वास बताया। इस मौके पर कथा में श्रद्धालु विष्णुदत्त वासुदेव बने तथा मीनाक्षी शर्मा देवकी बनी। वीरवार की कथा प्रारम्भ से पूर्व यजमान देवेंद्र कुमार तथा नीरू शर्मा ने महामंडलेश्वर डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज के सानिध्य में भारत माता एवं व्यासपीठ का पूजन व आरती की।
कथा व्यास महामंडलेश्वर डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज ने बताया कि गोकुल में नंद अर्थात आनंद है। यशोदा अर्थात मनुष्य यश है। मनुष्य शरीर स्वरूप गोकुल में ही भगवान श्री कृष्ण वास करते हैं। उन्होंने कथा में शिशु भगवान कृष्ण के कारागार से जाने के प्रसंग की चर्चा करते हुए कहा कि भगवान के प्रकट होते ही अहंकार रूपी कंस का कुनबा सो गया। उन्होंने कहा कि अहंकारी मनुष्य भगवान के दर्शन नहीं कर सकता है। माया के आते ही अहंकार जाग जाता है व जेल के द्वार भी खुल जाते हैं। डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज ने बताया कि मनुष्य शरीर में आते ही माया की लीलाएं चलती हैं। इस मौके पर षडदर्शन साधुसमाज के संगठन सचिव वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, प्रेम नारायण शुक्ल, पुष्पा शुक्ल, जय शंकर, मनुदत्त कौशिक, विष्णु दत्त शर्मा, सतपाल शेरा, डा. पुनीत टोकस, कुसुम सैनी, कविता तिवारी, डा. दीपक कौशिक, डा. सुनीता कौशिक, प्रेम नारायण अवस्थी, भूपेंद्र शर्मा, भारत भूषण बंसल इत्यादि भी मौजूद रहे।
व्यासपीठ पर महामंडलेश्वर डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज एवं श्रद्धालु।