चरणस्पर्श:वैज्ञानिकतायुक्त संस्कार
सनातन संस्कृति की मान्यताओं में प्रणाम का महत्त्वपूर्ण स्थान है।यह किसी भी व्यक्ति के विनयी और उत्तम नैतिक चरित्र से परिपूर्ण होने का द्योतक माना जाता है।विद्वानों के अनुसार प्रणाम शब्द संस्कृत के ‘अन्नाम’ में ‘प्र’ उपसर्ग लगने से व्युत्प्न्न होता है।जिसका अर्थ होता है आगे की ओर झुकना।इसप्रकार जब कोई व्यक्ति अपने से श्रेष्ठ व पूज्य तथा आदरणीय के सम्मान में आगे की ओर झुककर अभिवादन करता है तो उसे प्रणाम करना कहा जाता है।प्रणाम बुद्धि और अहंकार से युक्त मानव मन का साबुन कहा जा सकता है।
भारतीय संस्कृति में अपने से बड़ों,श्रेष्ठों,गुरुओं व अपने माता-पिता के पाँव छूकर प्रणाम करने की परंपरा वैदिक कालीन है।यूँ तो अपने से बड़ों के प्रति आदर व्यक्त करने हेतु विश्व के सभी समुदायों व धर्मों में अलग-अलग मान्यताएं व परंपराएं हैं किंतु चरणस्पर्श प्रणाम जैसा वैज्ञानिकतायुक्त संस्कार केवल और केवल सनातन संस्कृति का ही अंग है।
भारतीय वाङ्गमय में कहा गया है कि-
“अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्यायशोबलं।।
अर्थात जो लोग नित्य अपने से बड़ों का अभिवादन अर्थात पांव छूकर प्रणाम करते हैं उनकी आयु,विद्या,यश और बल में वृद्धि होती है।
कदाचित कहना अनुचित नहीं होगा कि वैज्ञानिकता की कसौटी पर उक्त श्लोक पूरी तरह खरा उतरता है।प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन के गति के तृतीय नियम क्रिया और प्रतिक्रिया के सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक क्रिया के विपरीत और बराबर प्रतिक्रिया होती है।वैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्य की हाथ की अंगुलियों से ऊर्जा ग्रहण की जाती है जबकि पैर के अंगूठों से ऊर्जा का निकास होता है।ऐसे में जब कोई व्यक्ति किसी के सम्मुख झुककर उसके पैरों के नाखूनों को स्पर्श करता हुआ प्रणाम करता है तो अंगूठों से होते हुए हाथ में ऊर्जा का संचार होता है।दूसरी तरफ जिसके पैरों पर झुककर प्रणाम किया जाता है तो वह झुकने वाले के सिर पर हाथ रखकर स्नेह प्रदर्शन करता है।इसप्रकार पैर से होकर हाथ तक के स्पर्श से ऊर्जा के प्रवाहन का एक चक्र पूरा हो जाता है।जिससे दोनों ही लोग नवीन आनंद की अनुभति करते हैं औरकि चेहरे आनंदित हो जाते हैं।यह ऊर्जा के प्रवाहन की अलौकिकता के चलते ही होता है।
श्रेष्ठजनों के प्रति अभिवादन का प्रदर्शन सदैव गुणज्ञ होने का परिचायक भी माना जाता है।यह अपने”मैं” और “अहम” को तिलांजलि देते हुए विनम्र और संस्कारवान होने का भी प्रमाण माना जाता है।किसी भी व्यक्ति के महान होने के लिए आवश्यक गुणों में से एक गुण अपने से बड़ों के प्रति आदर व्यक्त करना भी होता है।जिस निमित्त चरणस्पर्श करते हुए प्रणाम करना सर्वश्रेष्ठ विधा माना जाता है।सुभाषितरत्नभण्डागारम में गुण को महत्ता का वर्णन करते हुए कहा गया है कि-
“गुणा:सर्वत्र पूज्यन्ते पितृ वंशो निरर्थक:।
वासुदेवं नमस्यन्ति वासुदेवं न मानवा:।।”
पैर छूकर प्रणाम करने की महत्ता का वर्णन महात्मा सूरदास जी करते हुए लिखते हैं कि-
“चरण कमल बंदौ हरिराई।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै,
अंधे को सबकुछ दर्शाई।।”
स्वयम गोस्वामी तुलसीदास जी चरणस्पर्श प्रणाम का वर्णन करते हुए रामचरित मानस में लिखते हैं कि-
“देवि पूजिपद कमल तुम्हारे।
सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।”
इतना ही नहीं “बन्दउँ प्रथम महीसुर चरना” लिखते हुए महात्मा तुलसी ने अभिवादन के किसी अन्य उपागम की बजाय चरणवन्दना को सर्वोत्कृष्ट माना है।कदाचित विज्ञान की मान्यताओं को संस्कार का नाम देकर भारतीय मनीषियों ने जीवन शैली की जिस विधा का प्रतिपादन किया है वह वैश्विक शांति,समृद्धि,स्वास्थ्य,सुख और नवीन ऊर्जा की प्राप्ति का मूल है।
चरणस्पर्श प्रणाम को गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के आधार पर भी वैज्ञानिक मान्यताएं प्राप्त हैं।वैज्ञानिकों के अनुसार मानव के शरीर का ऊपरी भाग उत्तरी ध्रुव तथा पैरों को दक्षिणी ध्रुव माना जाता है।इसप्रकार जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे का चरणस्पर्श करता है तो दोनों विपरीत ध्रुवों के मध्य आकर्षण शक्ति के चलते अद्भुत और अलौकिक ऊर्जा का संचरण होता है।इसप्रकार चरणस्पर्श से एकप्रकार का ऊर्जा चक्र बनता है।जिससे सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति और नकारात्मक का ह्रास होने से क्रोध,वैर,द्वेष,आक्रोश,अहम,अहंकार आदि का
शमन होता है।इन नकारात्मक भावों और विचारों के शमन को भी सकारात्मक ऊर्जा का सम्वर्धन माना जाता है।जिससे व्यक्ति को प्रसन्नता और सुख की अप्रतिम अनुभूति होती है।
भारतीय संस्कृति में चरणस्पर्श प्रणाम के अतिरिक्त साष्टांग प्रणाम व नमस्ते करते हुए भी अभिवादन की सुंदर व्यवस्था है।विद्वानों के अनुसार नमस्ते और नमस्कार दोनों ही अपने श्रेष्ठों के प्रति सम्मान ज्ञापित करने की विधाएं हैं किंतु नमस्ते का प्रयोग एकाकी अर्थात किसी एक व्यक्ति के लिए जबकि नमस्कार का प्रयोग तब किया जाता है जब अपने से श्रेष्ठजनों की संख्या एकाधिक हो।इसप्रकार कहा जा सकता है कि भारतीय संस्कृति में श्रेष्ठजनों के प्रति सम्मान ज्ञापित करने के अनेक प्रकार हैं।जिनमें चरणस्पर्श करते हुए हाथ की अंगुलियों से पैरों के नाखूनों का स्पर्श करना उर्जाचक्र का परिचायक होता है।इसप्रकार चरणस्पर्श प्रणाम की महत्ता को वैज्ञानिक भी गुरूत्वाकर्षण और ऊर्जा के स्थानांतरण के सिद्धांतों के आधार पर अभिप्रमाणित करते हैं।दुर्भाग्य से आज की नई पीढ़ी को अपने संस्कारों का उचित ज्ञान न होने से जहाँ अभिवांच्छित इष्ट की पूर्ति नहीं होती तो वहीं हमारे भीतर का अहम भी जस का तस पड़ा रहता है।अतः स्वस्थ और दीर्घायु होने तथा यश,बुद्धि और विक्रम की प्राप्ति का चरणस्पर्श प्रणाम से सहज कोई अन्य मार्ग नहीं है।
-उदयराज मिश्र
मण्डल संयोजक, अयोध्यामण्डल
राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ,उत्तर प्रदेश
(माध्यमिक संवर्ग)