अल्लाह को उम्मते मोहम्मदिया को जहन्नम में ही जलाना होता तो रमजान का महीना कभी न बनाता
कैप्शन, मौलाना शहबाज अख्तर नदवी का फाइल फोटो
अररिया (साजिद आलम)
प्रखंड के किस्मत खवासपुर पंचायत अंतर्गत जामा मस्जिद मोमिन टोला पलासी के इमामों खतीब मौलाना शहबाज अख्तर नदवी ने अपने तकरीर में कहा कि माहे रमजान की आमद आमद है। यह बरकत वाला महीना है। इस माह की अजमत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है। कुरान मुकद्दस का नुजूल इसी पाक महीने में हुआ। रमजान उल मुबारक की फजीलत और उसके तकाजे ये है के अल्लाह ताला ने इस माहे मुबारक की निस्बत अपनी तरफ खास फरमाई है।
रमजान का पहला अशरा रहमत, दूसरा अशरा मगफेरत और तीसरा अशरा जहन्नम की आग से नजात का है। रमजान की अहमियत के बारे में अल्लाह ताला ने हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अगर मुझे आप की उम्मत को जहन्नम में ही जलाना होता तो रमजान का महीना कभी ना बनाता। जब रमजानुल मुबारक का चांद नजर आता तो आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम फरमाते थे के ए चांद खैरो बरकत का है। मैं उस जात पर ईमान रखता हूं। जिसने तुझे पैदा फरमाया। हजरत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने दुआ की के हलाक हो जाए वह शख्स जिसको रमजान का महीना मिले और वह अपनी बख्शीश न करवा सके। जिस पर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया आमीन। हजरत जिब्रील अलैहिस्सलाम की यह दुआ और उस पर हजरत मोहम्मद का आमीन कहना। इस दुआ से हमें रमजान की अहमियत को समझ लेना चाहिए। आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का इरशाद है के रमजान की जब पहली रात होती है तो शयातीन को भी बंद कर दिया जाता है। और दोजख के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। इसका कोई भी दरवाजा नहीं खोला जाता और बहिश्त के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। और इसका कोई भी दरवाजा बंद नहीं किया जाता और एक आवाज देने वाला आवाज देता है। ए नेकी के चाहने वाले आगे बढ़ के नेकी का वक्त है और बदी के चाहने वाले बदी से रुक जा और अपने नफ्स को गुनाहों से बाज रख। क्योंकि यह वक्त गुनाहों से तौबा करने का और उनको छोड़ने का है। और बहुत से बंदों को अल्लाह ताला
मांफ फरमाते हैं और दोजख की आग से निजात देते हैं। रमजान के इस मुबारक महीने में इन तमाम फजीलतो को देखते हुए मुसलमानों को एबादत का खास एहतेमाम करना चाहिए। इस माहे मुबारक में ऐसे अंदाज में इबादत को फर्ज के तौर पर मोतीअययन फरमा दिया गया है। इंसान इस एबादत के साथ अपनी तमाम जरूरयात भी कर सकता है। और इसी खास तरीके एबादत में भी मसगुल रह सकता है। ऐसी खास इबादत को रोजा कहा जाता है।