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वरुथिनी एकादशी का महत्व,आज मंगलवार 26 अप्रैल को है एकादशी।
पिहोवा : शिवशक्ति पीठ आश्रम अरुणाय के स्वामी वेद पुरी जी महाराज ने आज एकादशी पर्व के बारे में जानकारी देते हुए बताया की शास्त्रों में इस बात का वर्णन मिलता है कि वरुथिनी एकादशी के बारे में भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को इसके महत्व के बारे में बताया था। कहा जाता है कि इस व्रत को जो भी करता है उसे मृत्यु के उपरांत बैकुंठ की प्राप्ति होती है और जीवन भर सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मन को भी शांति और चैन मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी मिश्रित जल अर्पित करने से आपके घर में लक्ष्मी का आगमन होता है। इस व्रत का पारण करने के बाद उपासक को खरबूजे का दान करना चाहिए।
स्वामी जी ने बताया की वरुथनी एकादशी के व्रत के दौरान कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए। व्रत में नमक का प्रयोग भी नहीं करना । जो भक्त वरुथनी एकादशी के व्रत को श्रद्धा पूर्वक करता है वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
विष्णु पुराण के अनुसार वरुथनी एकादशी का व्रत सौभाग्य की प्राप्ति के लिए किया जाता है। वरुथनी एकादशी पर भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। इस दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व होता है।
क्यों खास है वरूथिनी एकादशी।
स्वामी वेद पुरी ने बताया की पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से व्यक्ति को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। साथ ही व्यक्ति के लिए स्वर्ग का मार्ग खुलता है। सूर्य ग्रहण के समय दान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल इस व्रत को करने से प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य लोक और परलोक दोनों में सुख पाता है और अंत समय में स्वर्ग जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को हाथी के दान और भूमि के दान करने से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, वरूथिनी शब्द संस्कृत भाषा के ‘वरूथिन्’ से बना है, जिसका मतलब है। प्रतिरक्षक, कवच या रक्षा करने वाला। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से विष्णु भगवान हर संकट से भक्तों की रक्षा करते हैं और सुख- समृद्धि का वरदान देते हैं।