रमजान है इबादत का महीना ,बदले में मिलता है सत्तर गुणा सवाब।
बाजार में फालतू घूमने के बजाए घरों में इबादत करें,,,,,,,,,,,,,,
अफसाना हसन
अररिया
मजहब ए इस्लाम की पांच बुनियादी चीज है, जो फर्ज है।जिसमे कलमा ,नमाज , हज,रोजा और जकात। इसमें रोजा एक ऐसा अरकान है जिसका सवाब अल्लाह सीधे तौर पर अपने बंदों को देगा। ये बातें इस्लामिक मामलों की जानकर और महिला समाजसेवी अफसाना हसन ने कही।उन्होंने कहा की तमाम महीनो से ये सबसे अफजल महीना है। उन्होंने कहा खुशनसीब हैं वो लोग जिन्हें माहे रमजान मिला और अपनी बख्शीस करवा ली। पूरा महीना इबादत का है। इस माहे मुबारक में हर किए गए नेकी का सवाब सत्तर गुणा बढ़ा दिया जाता है।उन्होंने बताया की खाना हलाल है लेकिन रोजे की हालत में हर खाने वाली चीज भी रोजे की हालत में हराम कर दी जाती है। जिसका मकसद ये है की लोग भूख और प्यास की सिद्दत को महसूस करे।दरअसल में रोजा नफस पर नियंत्रण का नाम है। सिर्फ भूखे प्यासे रहने का नाम रोजा नही है।इंसान के सभी ज्ञानिंद्रियों का रोजा होता है।ये पूरे एक महीने का अमल है ताकि बाकी ग्यारह महीना भी हमारा इसी तरह गुजरे। अफसाना ने कहा इस माहे मुबारक में सभी लोगों को फितरा और जकात निकालना चाहिए ताकि हमारे समाज के गरीब मजबूर ,लाचार ,यतीम लोग भी ईद की खुशियों में शामिल हो सके।इसलिए इसी माहे मुबारक में फितरा और जकात निकालने को कहा गया है। प्रति व्यक्ति पैंतीस रुपिया के हिसाब से फितरा और अपनी संपत्ति का ढाई प्रतिशत जकात निकालने का आदेश है। ताकि जरूरतमंद लोग और उनके बच्चे भी ईद की खुशियों में शामिल हो सके।साथ ही साथ इफ्तार का भी आयोजन करें इससे समाज में प्रेम और भाईचारगी का माहौल बनता है।अफसाना हसन ने कहा की आज हमारे घर परिवार की महिलाएं दिन भर खरीदारी के लिए दुकानों और सड़कों पर नजर आ रही है।जो अच्छी बात नही है।अब ये मुबारक महीना विदा होने को है ऐसे हम सभी को ज्यादा से ज्यादा इबादत में मशगूल रहने की जरूरत है।