हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कुरुक्षेत्र : श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय में बुधवार को गुरु पूर्णिमा उत्सव का आयोजन किया गया। कुलपति डॉ. बलदेव कुमार ने धनवंतरी भगवान के चरणों में पुष्प अर्पित कर वंदना की। इस अवसर पर सभी छात्र-छात्राओं ने अपने गुरुजनों का आशिर्वाद लिया। कुलपति डॉ. बलदेव कुमार ने सभी को गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं दी, और भावी डॉक्टरों, अधिकारियों और कर्मचारियों को संबोधित करते हुए कहा कि व्यक्ति जीवन में दो तरह के गुरु होते हैं एक चेतन और आचेतन। पहला गुरु चेतन रूप में माता-पिता होते हैं, उसके बाद शिक्षक, यानी उम्र के हर पड़ाव में व्यक्ति किसी न किसी रूप में हर छोटे-बड़े से सिखता ही रहता है। इसलिए सभी को आदर व सम्मान देना जरूरी है। दूसरा गुरु हमारी पुस्तकें है। जो समय-समय पर व्यक्ति का मार्गदर्शन करती हैं। इसलिए गुरु द्वारा बोले गए वचन, उनके चरणों का स्पर्श, कृपा दृष्टी सब कुछ कृपापूर्ण है। यह उसी को समझ आ सकता है। जिसने उस कृपा का अनुभव किया हो। इस अवसर पर कुलसचिव डॉ. नरेश कुमार ने भारत देश की प्राचीन गुरु शिष्य परंपरा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत की गुरु शिष्य परंपरा अति प्राचीन है। शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ गुरु रामदास हुए। शिवाजी महाराज ने हिन्दवी साम्राज्य की नीव रखी। ऐसे अनेकों उदाहरण है। किन्तु बीच के गुलामी के कालखंड के दौरान हमने अपनी प्राचीन विरासत को बिसार दिया था मगर पुनर्जागरण काल चल रहा है। भारत फिर से विश्व गुरु बनेगा तय है। श्रीकृष्णा राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. देवेंद्र खुराना ने कहा कि गुरु शिष्य को अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में ले जाने वाले परम तत्व का नाम है। वह अपने शिष्य को असत से सत की ओर ले जाता है और मृत्यु से अमृत की ओर। उसकी कृपा दृष्टि शिष्य पर होनी बहुत जरूरी है। उसके मार्गदर्श में ही शिष्य नित नई ऊंचाइयों को छूता है। डॉ. बलबीर सिंह संधू ने कहा कि गुरु शिष्य परंपरा अनेकों यगों से सजोई गई है। यह देश का सर्वोत्कृष्ट वैभव है इसी वैभव के कारण भारतभूमि आध्यात्मिक दृष्टि से विश्वगुरु के पद पर विराजमान है। इस अवसर पर डीन एकेडमिक अफेयर्स डॉ. शंभू दयाल, डॉ. दीप्ति पराशर, डॉ. रवि राज और छात्र-छात्राओं सहीत गैर-शैक्षणिक कर्मचारी मौजूद रहे।