तनावमुक्त जीवन और निरोगी काया के लिए ह्रदय में हमेशा दयाभाव आवश्यक : महन्त सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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मनुष्य को घर परिवार और समाज मे यश कीर्ति प्राप्त करने के लिए दयावान बनना आवश्यक : महन्त सर्वेश्वरी गिरि।
कुरुक्षेत्र :- राष्ट्रीय संत सुरक्षा परिषद की प्रदेशाध्यक्ष एवं श्री गोविन्दानंद आश्रम ठाकुरद्वारा पिहोवा की महन्त सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने आज सत्संग में श्रद्धालुओं को तनावमुक्त जीवन और निरोगी काया के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इंसान को हमेशा अपने ह्रदय में दयाभाव रखना चाहिए ओर समझना चाहिए कि में इस धरती पर मेहमान किराएदार के तौर पर रह रहा हूँ और मेरा मालिक परमपिता परमात्मा है जो मेरे ह्रदय में आत्मा के रूप में बैठा है वो जब चाहे आपके शरीर मे से निकल सकता है और फिर ये शरीर मिट्टी ही है जिसके ऊपर इंसान घमंड कर इंसान को इंसान नही समझ रहा अपने से कमजोर व्यक्तियों पर क्रोध और अपमानित कर रोगों के साथ बद्दुआ भी लेता है जोकि यह उसकी अज्ञानता ही है।
महन्त सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने क्रोध के मध्यनजर एक संस्कृत का श्लोक सुनाया।
यः समुत्पतितं क्रोधं
क्षमयैव निरस्यति।
यथोरगस्त्वचं जीर्णां
स वै पुरुष उच्यते ॥
भावार्थ :- जिस प्रकार सर्प अपनी जीर्ण-शीर्ण हो चुकी त्वचा को शरीर से उतार फेंकता है, उसी प्रकार जो व्यक्ति अपने सिर पर चढ़े क्रोध को क्षमा-भाव के साथ छोड़ देता है वही वास्तव में मनुष्य है, यानी गुणों का धनी व्यक्ति है।
महन्त सर्वेश्वरी गिरि ने बताया कि इंसान के अंदर अगर त्याग की भावना नही है तो वह इंसान ही नही है बल्कि इंसान के रूप में राक्षस ही है इस प्रकार के इंसान को मोक्ष तो बहुत दूर घर परिवार व समाज मे भी यश कीर्ति नही मिलती ओर अपयश का ही पात्र होता है।