भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं राधा रानी : महंत बंशी पुरी।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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गोविंदानंद आश्रम में राधाष्टमी पर संकीर्तन व भंडारा आयोजित।
पिहोवा , 4 सितम्बर : श्री गोविंदानंद आश्रम परिसर में रविवार को आज राधाष्टमी पर्व पर संकीर्तन एवं भंडारा आयोजित किया गया। बड़ी संख्या में आए राधा जी के भक्तों ने भव्य दरबार में हाजिरी लगाई।
इस मौके आश्रम की महंत सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने मधुर भजन सुना कर समां बांधा।गोविंदानंद आश्रम के संरक्षक महंत बंशी पुरी जी महाराज ने बताया की राधाष्टमी कथा में बताया गया कि पद्म पुराण के अनुसार राधा जी राजा वृषभानु की पुत्री थीं और उनकी माता का नाम कीर्ति था। कथानुसार एक बार जब राजा वृषभानु यज्ञ के लिए भूमि की साफ-सफाई कर रहे थे तब उनको भूमि पर कन्या के रूप में राधा जी मिलीं थीं। इसके बाद राजा वृषभानु कन्या को अपनी पुत्री मानकर लालन-पालन करने लगे। राधा जी जब बड़ी हुई तो उनका जीवन सर्वप्रथम कृष्ण जी के सानिध्य में बीता। किन्तु राधा जी का विवाह रापाण नामक व्यक्ति के साथ सम्पन्न हुआ था। वेदों, पुराणों एवं शास्त्रों में राधा जी को कृष्ण वल्लभा कहकर गुणगान किया गया है। मान्यता है कि राधाष्टमी के कथा श्रवण से व्रती एवम भक्त सुखी, धनी और सर्वगुणसम्पन्न बनता है। श्री राधा जी के जाप एवम स्मरण से मोक्ष की प्राप्ति होती है।यह भी माना जाता है कि यदि राधा जी का पूजा अथवा स्मरण नही किया जाता है तो भगवान श्री कृष्ण जी भी उस भक्त के द्वारा किए गए पूजा, जप-तप को स्वीकार नहीं करते हैं। श्री राधा रानी भगवान श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। अतः कृष्ण जी के साथ श्रीराधा रानी जी का भी पूजा विधि-पूर्वक करना चाहिए। इस दौरान भक्तों ने राधारानी जी के जयकारे लगाए। संकीर्तन के पश्चात विशाल भंडारे में श्रद्धालुओं ने भोजन ग्रहण किया। संकीर्तन की आरती में महिला मंडली एवं गणमान्यजनों ने राधाष्टमी पर्व में भाग लिया और महंत बंशी पुरी जी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया।