गीता जयंती उत्सव पर 1963 से आज तक कभी छुट्टी नहीं हुई : डा. हिम्मत सिंह सिन्हा।
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वामन द्वादशी पर छुट्टी मामले में संतों का आंदोलन खड़ा करना निरर्थक तथा अनावश्यक : डा. हिम्मत सिंह सिन्हा।
कुरुक्षेत्र, 18 सितम्बर : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व दर्शन शास्त्र आचार्य तथा भारतीय संस्कृति के विख्यात विद्वान डा. हिम्मत सिंह सिन्हा ने वामन द्वादशी के अवसर पर छुट्टी न करने के मामले में संतों द्वारा कोई आंदोलन खड़ा करने को निरर्थक तथा अनावश्यक बताया है। उन्होंने कहा कि यह मेला अब अगले वर्ष सितम्बर में आयोजित होगा। इसके लिए अभी से कोई विवाद खड़ा करना उचित नहीं दिखाई देता है। डा. सिन्हा कहते हैं कि इस मेले का सारा आयोजन ब्राह्मण व तीर्थ सुधार सभा करती रही है। इस सभा में कुरुक्षेत्र की महिमा, यहां की धार्मिक परंपराओं को जानने वाले तथा इस मेले के महत्व से परिचित बहुत से विद्वान मौजूद हैं। वह अगले वर्ष तक संबंधित अधिकारियों से मिलकर इसका समाधान निकाल लेंगे। संतों को आगे आने की कोई जरूरत नहीं है। डा. सिन्हा ने बताया कि पहले इस शहर में एक ही बड़ा संस्थान कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ही था। जहां इस पर्व पर छुट्टी की परंपरा चलाई गई थी। किंतु अब जिला बनने के बाद उपायुक्त कार्यालय, कोर्ट कचहरी इत्यादि बहुत से कार्यालय स्थापित हो गए हैं, जिनमें कई हजार कर्मचारी कार्यरत हैं। वह सब भी धर्म में आस्था रखते हैं। इसलिए सबको पर्वों में भाग लेने का समान अवसर मिलना चाहिए। यह कहना कि अन्य कर्मचारी काम पर रहें और केवल विश्वविद्यालय के कर्मचारी ही धार्मिक मेलों पर छुट्टी पर रहें। कोई बुद्धिमानी की बात नहीं होगी। सबको समान अवसर मिले, यह कार्य जिला प्रशासन अर्थात उपायुक्त महोदय ही कर सकते हैं। वह सब कार्यालयों तथा शिक्षा संस्थाओं के लिए समाज नीति बनाएं तथा सब पर समान रूप से लागू करें। विश्वविद्यालय भी इसी निर्देश का पालन करेगा और तभी छुट्टी करेगा। जब अन्य कार्यालय करेंगे। इसके लिए उपायुक्त महोदय से परामर्श करके कोई समान नीति बनवाना ही उचित रहेगा। डा. सिन्हा ने यह भी बताया कि गीता जयंती उत्सव पर 1963 से आज तक कभी छुट्टी नहीं हुई। यह उत्सव धार्मिक संस्था नहीं आयोजित करती, अपितु कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड द्वारा आयोजित होता है। जो सरकारी संस्था है। यह सरकारी मेला है, इस पर छुट्टी हो या ना हो यह निर्णय लेना सरकार का काम है। अन्य किसी का नहीं है यह उन्हीं पर छोड़ना उचित रहेगा।
भारतीय संस्कृति के विख्यात विद्वान डा. हिम्मत सिंह सिन्हा।