मनुष्य अपने कर्मों का फल स्वयं प्राप्त करता है
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कन्नौज। मिरगावां मृत्यु लोक में कर्म प्रभावी है। किये गए कर्म के परिणाम को अवश्य भोगना होगा। उक्त विचार खिवराज पुरवा में हो रही कथा के चौथे दिन सोमवार को सत्संग चर्चा के दौरान आचार्य मुनीन्द्र द्विवेदी ने ब्यक्त किये। गढ़िया कछपुरा के मजरा खिवराज पुरवा में श्री मद भागवत कथा के चौथे दिन सोमवार को कर्म के महत्व व उसके फल के विषय मे बताते हुएआचार्य द्विवेदी जी ने एक प्रेरक प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि कर्मकांडी किन्तु गरीब ब्राह्मण द्वारा महालक्ष्मी जी की तपस्या किये जाने पर महा लक्ष्मी मां ने प्रसन्न हो ब्राह्मण को एक वर्ष का राज पाट मिलने का आर्शीवाद दिया। ब्राह्मण ने तप से राज्य,राज्य से नरक मिलने बाली बात याद कर राजा बनने से बचने की कोशिश की।राजा के सामने पहुंच ब्राह्मण ने मृत्यु दंड पाने के लिए उद्दंडता दिखाने का उपक्रम किया और राजा के मुकुट पर एक पत्थर फेंक मारा। भवितव्य वश मुकुट पर अचानक प्रकट हुआ सांप पत्थर के लगने से मरकर नीचे आ गिरा।पत्थर मार कर राजा का अपमान करने का दण्ड देने को कर्मचारियों ने ब्राह्मण को तत्काल पकड़ लिया।राजा ने मरे हुए साँप को देख ब्राह्मण को अपना जीवनदाता समझ एक वर्ष के लिए उसे राजा बना दिया।इस प्रकार न चाहते हुए भी ब्राह्मण को अपने किये कर्म के फल के परिणाम में राज्य का भोग भोगना ही पड़ा। कथा के दौरान परीक्षित जितेंद्र कुमार व शीलादेवी सहित वंश,कुलदीप,राजाराम,रामनाथ, रोहित,अमित,सुरेंद्र सिँह,राजू व श्रोता भक्त मौजूद रहे।