जयराम विद्यापीठ में मकर संक्रांति पर मंत्रोच्चारण के साथ हुआ पूजन एवं भंडारा।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
मकर संक्रांति वास्तव में देवताओं का प्रभात काल है : आचार्य लेखवार।
कुरुक्षेत्र, 14 जनवरी : जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी की प्रेरणा से ब्रह्मसरोवर के तट पर जयराम विद्यापीठ परिसर में मकर संक्रांति के अवसर पर पूजन, अनुष्ठान एवं भंडारे का आयोजन किया गया। यजमान परिवार का आचार्य प. राजेश प्रसाद लेखवार शास्त्री एवं ब्रह्मचारियों ने विधिवत मंत्रोच्चारण के साथ पूजन करवाया। इसके उपरांत संतों का भंडारा दिया गया। आचार्य लेखवार ने बताया कि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति कहलाता है, इसी दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा गया है। उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति वास्तव में एक प्रकार से देवताओं का प्रभात काल है। मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान, जप-तप, श्राद्ध और अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व होता है। आचार्य लेखवार के अनुसार इस दिन किया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है। उन्होंने बताया कि मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपनी कक्षाओं में परिवर्तन कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है उसे संक्रांति कहा जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मकर संक्रांति पर स्नान दान जप तप पूजन श्राद्ध का विशेष महत्व होता है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है। मकर संक्रांति से दिन बड़े होने लगते हैं और रात्रि की अवधि कम होती जाती है। स्पष्ट है कि दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा और रात्रि छोटी होने से अंधकार की अवधि कम होगी। सूर्य ऊर्जा का स्त्रोत है। आचार्य लेखवार ने बताया कि मकर संक्रांति के दिन तीर्थ पर सभी देवी देवता अपना रूप बदलकर स्नान करने आते हैं।
जयराम विद्यापीठ में मकर संक्रांति पर भंडारे में प्रसाद ग्रहण करते लोग।