धर्मान्तरण से भयतीत आदिवासी समाज।
सेंट्रल डेस्क संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
प्रस्तुति : आरती दुआ
वरिष्ठ अधिवक्ता छत्तीसगढ़।
छत्तीसगढ़ : राष्ट्र भारत के हृदय मध्य प्रदेश से 1 नवम्बर 2000 को पृथक हुआ राज्य छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिण में स्थित बस्तर अंचल जहां आज भी अबुझमाढ़ स्थित है। यहां का आदिवासी समाज जिनके लिए अपनी रूढ़िया, संस्कृति और रिती रिवाजो की अलग ही मान्यता है। परन्तु आज के आदिवासी समाज अपनी विलुप्ति की ओर बढ़ता जा रहा है। आजादी से पुर्व यह समाज अपनी रूढ़ियो के कारण समाज मे पिछड़ा हुआ था। आदिवासी समाज को सामान्य वर्ग के साथ बराबरी का स्थान प्रदान करने के उद्देश्य से आजादी के बाद जब हमारे देश भारत के संविधान की रचना की गई, तब बाबा भीमराव अम्बेडकर के द्वारा आरक्षण रूपी वरदान की सहायता से आदिवासी वर्ग को सामान्य वर्ग के साथ खड़े करने का प्रयास किया गया। 26 नवम्बर 1949 को हमारे संविधान का निर्माण हुआ था जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया, तब प्रारम्भिक 10 वर्षो के लिए आदिवासी पिछड़े वर्ग को आरक्षण प्रदान किया गया। जिसे समय-समय पर बढ़ाया गया है। जिससे आदिवासी वर्ग को समाज में बराबरी का स्थान प्रदान करने हेतु शिक्षा के लिए सरकारी नौकरियो के लिए कुछ स्थान प्रदान किये गये, उद्देश्य यह था कि जो वर्ग समाज से कटा हुआ है। वह भी समाज में बराबरी का स्थान प्राप्त कर सके और भारत वर्ष नयी उन्नती की ओर अग्रसर हो सके। परिणाम स्वरूप जो वर्ग समाज से कटा हुआ था, उस वर्ग के सदस्य भी समाज मे सामान्य वर्ग के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर खड़ा होने लगा।
धर्मान्तरण का प्रभाव
हमारा भारतराष्ट्र एक धर्म निरपेक्ष राज्य है यहां पर व्यक्ति को किसी भी धर्म को मानने की सम्पूर्ण स्वतन्त्रता है। इस लिए कोई भी धर्मान्तरण कर सकता है। पिछले कुुछ दशकों से ईसाई धर्म के प्रचार के द्वारा आदिवासी समाज के भोले-भाले सदस्यो को प्रलोभनो एवं अडम्बरो के द्वारा उनकी मासुमियत से छल कर उनका धर्मान्तरण करवाया गया है। जिन आदिवासियो के द्वारा धर्मान्तरण किया गया, उन्हे मिसनरी से प्राप्त होने वाली सुविधाओ का लाभ प्राप्त हुआ उनके बच्चो को कॉरमेंट स्कूलो मे दाखिला मिला उनकी शिक्षा का स्तर बढ़ा उन्हे सरकारी पदो मे आरक्षित स्थानो का लाभ प्राप्त हुआ। और आदिवासी रूढ़ियो को मानने वाले के स्तर पर कोई विषेष प्रभाव नही पढ़ा वो आज भी समाज से कटे हुए है। धर्मान्तरण से होने वाले भेदभाव का शिकार हो रहे है।
आज कि स्थिती
आज भारत देश मे आदिवासी समाज भी दो वर्गाे मे विभक्त हो चुका है। एक वह जो आज भी आदिवासी है, और अपनी रूढ़ियो को मानते है अपने इष्ट देवी देवताओं को मानते है और अपनी संस्कृति को अपनाये हुए है। दूसरा वह वर्ग जिन्होने धर्मान्तरण कर अपनी सभ्यता से मुहमोढ़ लिया है, वह पूर्ण रूप से क्रिस्चेनिजम को अपना लिया है। और उन आदिवासियों से भेद भावपूर्ण व्यवहार करते है, जो आज भी मूलरूप से आदिवासी सभ्यताओं पर अपनी पूर्ण आस्था रखते है। बाबा भीमराव अम्बेडकर ने जब आरक्षण को हमारे देश मे लागू करवाया था, तो उनका ध्येय था कि वह हमारे देश से छुआछूत और भेदभाव को जड़ से खत्म कर सके समाज का हर वर्ग समानता को प्राप्त कर सके।
परन्तु आज फिर से भेदभाव की स्थिती उत्पन्न को गई है। जो आरक्षण उन आदिवासियो के लिए बनाया गया था जो सीमित साधनों मे जीवन व्यतीत कर रहे है। उन्हे प्राप्त हो सके उनकी बजाय आरक्षण का फायदा वो वर्ग उठा रहा है। जिन्हे मिसनरी से सारी सुविधाये प्राप्त हो रही है और ऑफिसरो के बच्चे ही ऑफिसर पदो पर आसीन हो रहे है।सरकारी पदो पर आसीन लोगो के बच्चो को सरकारी पद प्राप्त हो रहे है। और मूल आदिवासी समाज आज भी वैसे का वैसा ही जीवन व्यतित कर रहा है।
अब तो स्थित यह हो गयी है कि ईसाई धर्म को अपनाने वाले आदिवासी समाज मूल आदिवासी समाज से भेदभाव उत्पन्न कर रहा है। मूल आदिवासी समाज को हीनता के अंधकार में धकेलने का प्रयास कर रहा है। इसका सबसे बढ़ा उदाहरण है 29 दिसम्बर 2022 को हुआ नारायणपुर क्षेत्र का विवाद है। ईसाई धर्म को अपनाने वाले आदिवासी समाज अपने बच्चो तक को मूल आदिवासी समाज के बच्चो के साथ मेल मिलाप नही करने देना चाहता है।
अब हमारे सामने सवाल यह है कि :-
1, आरक्षण का मूल उद्देश्य क्या था समाज मे समानता लाना या भेदभाव को बढ़ावा देना।
2, आरक्षण की आवश्यकता किसे है जो सीमित साधनो और अंचल इलाको में रह रहे है या उन सरकारी पदो पर आसीन व्यक्तियो के बच्चो को जो सभी सुख सुविधाओं से सम्पन्न है।
3, क्या धर्मान्तरण सही है जो हमारे देश मे फिर से भेदभाव का उदय कर रहा है।