अजामिल की अपने बेटे के नाम नारायण पुकारने से ही उसका उद्धार
फिरोजपुर 27 फरवरी [कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता]:=
कथा के तीसरे दिन स्वामी आत्मानंद पुरी जी महाराज के आशीर्वाद और प्रेरणा से कुलभूषण गर्ग ने बताया कि सन्नकादि ऋषियों के शाप के कारण भगवान के द्वारपाल जय और विजय का स्वर्ग से पतन हो गया। शतरूपा और मनु महाराज के 2 पुत्र प्रियव्रत और उत्तानपाद और 3 कन्याएं आकृति, देवहूति और प्रसुति का जन्म हुआ। देवहूति और कर्दम ऋषि के कपिल भगवान का जन्म हुआ।
उत्तानपाद की दो पत्नियां सुरुचि और सुनीति थी।सुनीति के पुत्र का नाम था ध्रुव। ध्रुव का तात्पर्य है अविनाशी। ध्रुव जी को 5 वर्ष की आयु में ही परमात्मा के दर्शन हो गए थे।
जड़भरत जी का मृग के मोह में फंसकर मृग योनि में जन्म हुआ। और उन्होंने राजा रहुगण को उपदेश दिया।
और अजामिल जो कि बहुत ही दुष्ट था।सन्तो के कहने पर उसने अपने पुत्र का नाम नारायण रख लिया था। जब अन्त में यमदूत अजामिल को लेने आए तो वह अपने पुत्र नारायण- नारायण को पुकारने लगा। आखिर में नारायण का जप करके उसने अपनी जीव और जीवन को पवित्र बना लिया।अजामिल का जीवन सुधर गया और वह विमान में बैठकर बैकुंठधाम गया और साथ-साथ संसार को उपदेश भी देता गया की अतिशय पापी को भी निराश नहीं होना चाहिए, जाने अनजाने में भगवान का नाम जप करने से सारे पाप जल जाते हैं।
आज का पूजन सपरिवार श्रीमती निर्मला देवी गुप्ता और ज्योति प्रज्वलित विकास मित्तल ने की।