श्री जयराम विद्यापीठ में राजस्थान के श्रद्धालुओं द्वारा आयोजित भागवत कथा का समापन।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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जीव परमात्मा की सत्ता का अनुभव और चिंतन करते हुए जीवन निर्वाह करे : प. शिव लहरी गौतम।
सुदामा ने मित्रता को सर्वोपरि मानते हुए भगवान श्रीकृष्ण से कुछ नहीं मांगा : प. शिव लहरी गौतम।
कुरुक्षेत्र, 3 मार्च : देशभर में संचालित श्री जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी की प्रेरणा से ब्रह्मसरोवर के तट पर श्री जयराम विद्यापीठ परिसर में श्री दुर्वासा नाथ सत्संग मंडल के तत्वावधान में चल रही श्रीमद् भागवत के सातवें दिन व्यासपीठ से प. शिव लहरी गौतम ने कहा कि भगवान भाव के भूखे होते हैं। जो प्राणी अपनी अंतर आत्मा से भगवान को पुकारता है, भगवान सदा उसकी रक्षा करते हैं। संसार में परमात्मा की ही सत्ता है। इसके बाद भी जीव मूर्खतावंश संसार की वस्तुओं को अपना समझ बैठता है। यह जीव की सबसे बड़ी भूल है। जीव को चाहिए कि वह परमात्मा की सबसे बड़ी सत्ता का अनुभव और चिंतन करते हुए जीवन निर्वाहन करें। ताकि इस माया रूपी संसार में रहते हुए जीव मोक्ष को प्राप्त करे। कथा वाचक ने सुदामा चरित्र की कथा में चर्चा कहा कि मित्रता में गरीबी और अमीरी नहीं देखनी चाहिए। मित्र एक दूसरे का पूरक होता है। भगवान कृष्ण ने अपने बचपन के मित्र सुदामा की गरीबी को देखकर रोते हुए अपने राज सिंहासन पर बैठाया और उन्हें उलाहना दिया कि जब गरीबी में रह रहे थे तो अपने मित्र के पास तो आ सकते थे। लेकिन सुदामा ने मित्रता को सर्वोपरि मानते हुए श्रीकृष्ण से कुछ नहीं मांगा। उन्होंने बताया कि सुदामा चरित्र हमें जीवन में आई कठिनाइयों का सामना करने की सीख देता है। सुदामा ने भगवान के पास होते हुए अपने लिए कुछ नहीं मांगा। अर्थात निस्वार्थ समर्पण ही असली मित्रता है। कथा समापन के दौरान प. शिव लहरी गौतम ने राजा परीक्षित मोक्ष व सुखदेव महाराज की विदाई का वर्णन किया। कथा के बीच-बीच में भजनों पर श्रद्घालुओं ने नृत्य भी किया। इस दौरान कृष्ण-सुदामा की सजीव झांकी सजाई गई। जिसे देखकर श्रोता भावविभोर हो गए। कथा के विश्राम दिवस पर सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने दोस्ती की मिसाल पेश की और समाज में समानता और आपसी प्रेम का संदेश दिया।
व्यासपीठ से कथा करते हुए प. शिव लहरी गौतम, कथा में झूमते हुए श्रद्धालु एवं आरती करते हुए श्रद्धालु।