सरस्वती तीर्थ स्थल पिपली को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए सरपंच ने जमीन की दान : धुमन।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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खेडी मारकंडा के सरपंच कृष्ण कुमार ने 450 गज जमीन की दान, बोर्ड के उपाध्यक्ष धुमन सिंह किरमच ने सरकार की तरफ से व्यक्त किया आभार।
नाभी कमल के महंत विशाल दास ने की अष्टकोषी यात्रा पूरी
कुरुक्षेत्र 20 मार्च : हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष धुमन सिंह किरमच ने कहा कि सरस्वती तीर्थ पिपली को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए अब दानी लोग सामने आने लगे है। इस स्थल को विकसित करने के लिए गांव खेडी मारकंडा के सरपंच कृष्ण कुमार ने बोर्ड को 450 गज जमीन दान के रूप में दी है। इस कार्य के लिए सरपंच कृष्ण कुमार का सरकार की तरफ से आभार भी व्यक्त किया गया है।
बोर्ड के उपाध्यक्ष धुमन सिंह किरमच को गांव खेडी मारकंडा के सरपंच जमीन दान देने से सम्बन्धित दस्तावेज सौंपा है। सरपंच कृष्ण कुमार ने बोर्ड के उपाध्यक्ष धुमन सिंह को इस बाबत एक पत्र सौंपते हुए सरस्वती बोर्ड को जमीन देने बाबत पूरा ब्यौरा दर्ज किया है। उपाध्यक्ष ने सरपंच का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सरपंच कृष्ण कुमार ने सरस्वती माता को जमीन दान देकर एक महान कार्य किया है। इस कार्य के लिए बोर्ड के सदस्य और शहर के नागरिक सदैव आभारी रहेंगे। इस जमीन को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का प्रयास किया जाएगा। उपाध्यक्ष ने नाभी कमल के महंत विशाल दास का भी आभार व्यक्त करते हुए कहा कि चैत्र माह में चौदस को अष्टïकोषी यात्रा को पूरा करके एक नेक कार्य किया है। इससे अष्टïकोषी यात्रा में मुम्बई व अन्य क्षेत्रों से आए श्रद्धालु भी शामिल हुए है। यह अष्टïकोषी यात्रा नाभी कमल से शुरू होकर सरस्वती नदी के किनारे बने व बसे तीर्थों की यात्रा पूरी होने के बाद नाभी कमल मंदिर पर ही सम्पन्न होती है।
उन्होंने कहा कि इस अष्टïकोषी यात्रा को विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में लिखा है कि ब्रह्मा विष्णु महेश ने भी इस अष्टïकोषी यात्रा को पूरा किया था। सरस्वती नदी के किनारे स्थित अष्टïकोषी यात्रा को फिर से बहाल करने का कार्य किया जाएगा। सरस्वती पर इसके स्थान ईश्वर महादेव जिस यात्रा को 24 किलोमीटर माना जाता है पुराणों में भी अष्टïकोषी यात्रा का वर्णन है। यह क्षेत्र महाभारत युद्ध में बलराम ने सरस्वती नदी किनारे स्थित सभी तीर्थों की यात्रा की थी और इसका उल्लेख महाभारत पुराण के समय नाभि कमल मंदिर से शुरू होती है।