कन्नौज
हड्डियों की टीबी सही समय पर सहीं जांच और उपचार जरूरी – जिला क्षय रोग अधिकारी
सही समय पर सही ईलाज टीबी से दिलाएं निजात
बीमारी तथा ईलाज के बारे में रोगी की जागरूकता सबसे अहम
कन्नौज जिला संवाददाता प्रशांत कुमार त्रिवेदी
टी.बी.की बीमारी शुरुआत में फेफड़ों को ही प्रभावित करती है लेकिन धीरे-धीरे रक्त प्रवाह के जरिए यह शरीर के अन्य हिस्सों तथा हड्डियों में भी फैल सकती हैं। हड्डियों में होने वाली टी.बी.को बोन टीबी या अस्थि क्षय रोग भी कहा जाता है। इसकी सही समय पर पहचान और ईलाज कराया जाएं तो यह पूरी तरह ठीक हो सकती हैं यह कहना है जिला क्षय रोग अधिकारी डा.जे.जे.राम का |
जिला क्षय रोग अधिकारी बताते है कि मस्कुलोस्केलेटल टयूबरक्लोसिस टीबी का ही एक प्रकार है जो हड्डियों और जोड़ो की टीबी होती हैं। टीबी एक संक्रामक रोग है जो माइकोवैक्टीरियम टयूबरक्लोसिस नामक वैक्टीरिया से फैसला है। इसमें दवाई का पूरा कोर्स होता है अगर आप इसे एक दिन भी मिस करते हैं तो पूरा कोर्स दोबारा से शुरु करना पड़ता है। टीबी प्रमुख रुप से श्वसन तन्त्र और पाचन तन्त्र को प्रभावित करती है लेकिन खुन के माध्यम से शरीर के अन्य अंगो में फैल जाती है। टीबी कई तरह की हो सकती है। बाल और नाखून को छोड़कर टीबी शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती हैं। हड्डियों पर भी इसका गहरा असर होता है।
इन लक्षणों पर रखें नजर
उन्होंने बताया कि लोग अक्सर पीठ व कमर दर्द को अक्सर मामूली समझकर लापरवाही करते हैं। जबकि यह गंभीर बीमारी का संकेत भी हो सकता है। कलाइयों, कुहनियों तथा पैरों के जोड़ो पर इसका असर ज्यादा होता हैं। अगर 2 से 3 हफ्ते तक आपको आराम नहीं मिल रहा तो डाक्टरी जांच जरूर करवाएं। आंकड़ों के मुताबिक, लगातार हो रहे पीठ दर्द के केसों में से 5 से 10 फीसदी मरीजों में रीढ़ की हड्डी की टीबी का पता चलता है।
कैसे पता चलती है हड्डियों और जोड़ों की टीबी
जिला क्षय रोग अधिकारी बताते हैं कि हड्डियों और जोड़ों की टीबी का पता देर से चलता है। इस बीमारी का समय पर पता चलना भी जरूरी है जिससे व्यक्ति को विकलांग होने से बचाया जा सके। अब नई तकनीक जैसे सीटी स्कैन,एमआरआई के माध्यम से आसानी से इस बीमारी का पता चल जाता है।
क्या सावधानी बरतें
जिला क्षय रोग अधिकारी बताते हैं कि सामान्य टीबी का इलाज 6 महीने में हो जाता है। लेकिन स्पानइल टीबी के दूर होने में 12 से 18 महीने का वक्त लग सकता है। गौरतलब है कि टीबी के कीटाणु फेफड़े से खून में पहुंचते हैं और कई बार रीढ़ की हड्डी तक इसका प्रसार हो जाता है।जो लोग सही समय पर इलाज नहीं कराते या इलाज बीच में छोड़ देते हैं, उनकी रीढ़ की हड्डी गल जाती है, जिससे स्थायी अपंगता आ जाती है। किसी भी आयु वर्ग के लोग रीढ़ की हड्डी के टीबी का शिकार हो सकते हैं। ईलाज से यह रोग शत-प्रतिशत ठीक हो जाता हैं।