हिंदी और उर्दू साहित्य में समान दखल रखनवाले गंगा जमुनी तहजीब के साहित्यकार, प्रोफेसर अहमद हसन दानिश का हुआ निधन…
इनके यूं चले जाने से साहित्य जगत की हुई अपूरणीय क्षति
चाहनेवालों ने दी नम आंखों से अंतिम विदाई !
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“आओ हम इस देश ए जलाएं
हर कूचा रोशन हो, हर गोशा सुसज्जित हो
हर गली प्रकाशित हो, हर कली सुरभित हो
हर रोज यहांँ ईद मने, हर शब यहाँ दिवाली हो”
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अपनी रचना से एख अलग छाप छोड़नेवाले हिंदी और उर्दू का गंगा-जमुना पुष्पकुंज माने जाने वाले, पूर्णिया माटी के जाने-माने हिंदी और उर्दू अदब के साहित्यकार प्रोफेसर अहमद हसन दानिश साहब अपनी एही लीलि समाप्त कर सदा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गए । उनके निधन से उनके परिजन और उनके सभी चाहनेवाले मर्माहत हैं ।साथ ही पूर्णिया के शिक्षा एवं साहित्य जगत में भी शोक की लहर है । प्रोफेसर अहमद हसन दानिश साहब ने अपने जीवन काल में जहां उर्दू और हिंदी में साहित्य की रचना की वहीं पहले वकालत और फिर शिक्षा सेवा से भी जुड़े रहे । पूर्णिया के बुजुर्ग समाज के संस्थापक सदस्यों में भी वह शामिल थे । साथ ही पूर्णिया में विश्वविद्यालय के स्थापना के लिए आरंभिक दौर के आंदोलन में से भी उनका जुड़ाव रहा था । अहमद हसन दानिश का जन्म 13 सितंबर 1945 नवगछिया के समीप मखातकिया गाँव में हुआ था । किशोरावस्था से ही इनके अंदर साहित्य की ललक जाग गई थी। यह इकबाल व फिराक गोरखपुर से काफी प्रभावित थे । अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने पहले वकालत की फिर m.a. करने के बाद उर्दू साहित्य में उर्दू में डॉक्टरेट की डिग्री भी हासिल की ।फलस्वरूप इनकी बहाली पूर्णिया महाविद्यालय के प्रोफेसर के रूप में हो गई और कालांतर में अपने विषय उर्दु के विभागाध्यक्ष भी बने ।सन् 2015 में बीएन मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा से यूनिवर्सिटी प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त हुए । हालांकि महाविद्यालय मैं बहाली से पूर्व उन्होंने शिक्षा सेवा से इधर वकालत भी की थी, क्योंकि इनके पास एलएलबी की भी डिग्री थी । इन्होंने अपने जीवन काल में उर्दू और हिंदी में कुल नौ पुस्तकों की रचना की है। इनमें कविता, कहानी, आलोचना और शोध आलेख शामिल हैंं । सुर सरिता, बिहार में उर्दू मसनवी का इर्तका, मसनवी का फन, जांच परख, पैकरे सुखन, बिहार में उर्दू मसनवी की तारीख व तनकीद, शमा पिघलती रही, सीमांचल में उर्दू शायरी व हिनदी कविता संग्रह “पग पग दीप जले” के नाम दर्ज र्हैं । इनकी एक खासियत यह भी थी कि, यह देवनागरी लिपि में उर्दू शायरी भी लिखा करते थे, जो फुटकर रूप में विभिन्न बाहरी संकलनों में छपी है । साथ ही कई कविताएं भी स्थानीय पत्रिकाओं के साथ-साथ बाहर से निकलने वाले पत्र-पत्रिकाओं में संकलित हो चुकी है । इन्हें बुजुर्ग समाज के साथ-साथ पूर्णिया की कई संस्थाओं की ओर से, इनके सामाजिक एवं साहित्यिक योगदान के लिए सम्मानित भी किया गया था । इनका शोध प्रबंध “इकबाल के कलाम में कुराआन व हदीस की तरजूमानी”.भी प्रकाशित है । यह पिछले दिनों से बीमार चल रहे थे और पूर्णिया के एक आर्थोपेडिक सर्जन के अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था पूर्व में भी ने आंशिक पक्षाघात हुआ था लेकिन उपचार के बाद ठीक हो गए थे इधर इनकी तबीयत फिर बिगड़ गई थी जिसकी वजह से इनका इंतकाल हो गया । लोगों ने पूर्णिया में अवस्थित, इनके निज आवास “दानिश कदा”, सज्जाद कॉलोनी में ,इनके पार्थिव शरीर का अंतिम दर्शन किया और इन्हें जन्नत नसीब होने की दुआ मांगी । बुजुर्ग साहित्यकार के पार्थिव शरीर को संध्या की बेला में सोमवार को पूर्णिया के ही एक कब्रिस्तान में मिट्टी दी गई, जिसमे इनके सभी चाहने वाले शामिल हुए।