कुरुक्षेत्र का महाभारतकालीन स्थानेश्वरं महादेव मन्दिर जहां भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं अभिषेक किया।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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मन्दिर के महंत बंशी पुरी जी महाराज इस प्राचीन तीर्थ पर जनकल्याण की भावना से समय समय पर पूजा पाठ अनुष्ठान करवाते रहते है।
कुरुक्षेत्र : स्थानेश्वर महादेव मन्दिर महाभारत और पुराणों में वर्णित कुरुक्षेत्र का यह पावन पवित्र तीर्थ थानेसर शहर के उत्तर में स्थित है। इस तीर्थ का सर्वप्रथम उल्लेख बौद्ध साहित्य में उल्लेख है। महाकाव्य ग्रंथ में थूना नामक ब्राह्मण गांव का उल्लेख मिलता है। कालांतर में थूण नामक स्थान स्थाणु नाम से प्रसिद्ध हुआ वामन पुराण में इसे स्थाणु तीर्थ कहा गया है। इसके चारों और हजारों लिंग थे । जिसके दर्शन मात्र से ही व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है ।
स्थाणुतीर्थ ततो गच्छेत् सहस्त्रलिंग शोभितम्
तत् स्थाणु वट दृष्टवा मुक्तोभवति किल्विषै:
कहा जाता है सर्वप्रथम स्वयं प्रजापति ब्रह्मा जी ने इसकी स्थापना की थी। वामण पुराण में स्थाणु तीर्थ के चारों और अनेक तीर्थों का वर्णन आता है। पुराणों के अनुसार इस तीर्थ पर एक विशाल वटवृक्ष का उल्लेख मिलता है। जो आज भी स्थित है इसके उत्तर में शुक्र तीर्थ पूर्व में सोम तीर्थ दक्षिण में दक्ष तीर्थ ,पश्चिम में स्कन्द तीर्थ, का वर्णन मिलता है स्थाणु तीर्थ के नाम पर वर्तमान थानेसर नगर का नामकरण हुआ इसको प्राचीन काल में स्थानेश्वर कहा जाता था महाभारत के शल्य पर्व के अनुसार इस तीर्थ पर भगवान शिव ने घोर तप किया तथा सरस्वती की पूजा के उपरांत उन्होंने इस तीर्थ की स्थापना भी की थी वामन पुराण के अनुसार मध्याह्न में पृथ्वी के सब तीर्थ इस तीर्थ में आ जाते हैं कहां जाता है महाभारत युद्ध से पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों सहित इस स्थान पर स्थानेश्वर महादेव की पूजा अर्चना कर उनसे युद्ध में विजय होने का वरदान प्राप्त किया था थानेसर के वर्धन साम्राज्य के संस्थापक पुष्पभूति ने अपने राज्य श्रीकंठ जनपद की राजधानी स्थानेश्वर नगर को ही बनाया था हर्षवर्धन राजा के राजकवि बाणभट्ट द्वारा रचित हर्ष चरित्र महाकाव्य में स्थानेश्वर नगर के सौंदर्य का अनुपम चित्रण किया गया है उसमें उन्होंने कहा मुनियों का तपोवन, सुधीजनों की संगीत शाला, शत्रुओं का यम नगर ,धनलोलुपो की चिंतामणि,शस्त्रोपजीतियो का वीर क्षेत्र, विद्यार्थियों का गुरुकुल ,गायकों का गंधर्व नगर ,वैज्ञानिकों के लिए विश्वकर्मा मंदिर ,वैदिहिको की लाभ भूमि ,बंदियों की द्यूतस्थान भले लोगों के लिए साधु समागम ,कामियों के लिए अप्सर:पुर ,चारणों के लिए महोत्सव ,समाज तथा विप्रो के लिए वसुधा के समान था स्थानेश्वर मंदिर के जीर्णोद्धार में मराठों का भी योगदान रहा है कहा जाता है कि पानीपत के तीसरे युद्ध से पहले मराठों ने यहां के अनेक मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया जिसमें यह मंदिर प्रमुख था।