गौरैया आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है- जे.के. जायसवाल।
गौरैया संरक्षण के लिए बच्चों ने लिया संकल्प।
स्पैरो लाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट द्वारा आयोजित किया गया कार्यक्रम ।
रिपोर्टर / सोनी चौहान
विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर शुक्रवार को बीएसएन ग्लोबल स्कूल शाहपुर के प्रागंण में शुक्रवार को स्पैरो लाइफ कंजर्वेशन ट्रस्ट द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बच्चों ने गौरैया के संरक्षण और संवर्धन का संकल्प लिया। कार्यक्रम में बच्चों ने गौरैया के संरक्षण के तरीके, जीवन चक्र और पर्यावरण के प्रति गौरैया कितनी महत्वपूर्ण है के बारे में जानकारी प्राप्त की साथ ही साथ बच्चों ने गौरैया के लिए घोसला निर्माण कैसे किया जाए के बारे में सीखा। ट्रस्ट द्वारा बच्चों में आइसक्रीम स्टिक से बने पचास घोंसलें वितरित किए गए। बेलघाट निवासी स्पैरो मैन के नाम से प्रसिद्ध
ट्रस्ट के मुख्य ट्रस्टी सुजीत कुमार ने बच्चों को सम्बोधित करते हुए कहा कि पूरे विश्व में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है। जिसका श्रेय नेचर फॉरएवर सोसायटी के अध्यक्ष मोहम्मद दिलावर को जाता है। जिनके प्रयासों से 2010 में पहली बार विश्व गौरैया दिवस मनाया गया। गौरैया दिवस मनाने का उद्देश्य विलुप्त हो रही नन्ही चिड़िया गौरैया के संरक्षण और संवर्धन के लिए लोगों में जागरूकता लाना है।गौरैया को धान, चावल,पका भात,चूरा और भुजिया नमकीन अत्यंत प्रिय इसके साथ वह छोटे-छोटे कीड़े मकोड़े, कैटरपिलर भी बड़े चाव से खाते हैं। गौरैया को मीठा खाना पसंद नहीं। गौरैया अमूमन गर्मियों में ही अंडे देती है। कई बार दूसरे मौसम में भी गौरैया के अंडे और बच्चे देखने को मिलते हैं। एक गौरैया एक महीने में चार से पांच अण्डे देती हैं।अण्डे से बच्चे निकलने में दस से बारह दिन लगते हैं।और 30 दिन में अण्डे से बच्चे बनकर उड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं।प्रत्येक गौरैया अपने घोंसलों को पहचानती है।कोई दूसरी गौरैया उनके घोंसलों पर कब्जा नहीं कर सकती। गौरैया घोंसले में तिनका और मुर्गी के पंखों को ला कर उसे अपने अनुकूल बनाती है। वे सुबह घोंसलों से निकल जाती हैं और दिन भर घूम कर पुनः अपने घोंसलों में वापस आ जाती हैं। गौरैयों के व्यवहार,स्वभाव और भाषा को अच्छी तरह समझा जा सकता है। बिल्ली, बाज को देखकर गौरैया हमें खतरे का अहसास कराते हुए अलग तरह की आवाज और अण्डे देते समय अलग तरह की आवाज निकालती है।गौरैया के विलुप्त होने के पीछे सबसे बड़ी वजह खेतों में प्रयुक्त होने वाले किटनाशक है।इसके साथ ही मोबाइल टावर से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणें हैं जो गौरैया के प्रजनन क्षमता को प्रभावित करता है।
विद्यालय के निदेशक जे.के. जायसवाल ने बताया कि एक समय था जब नन्ही चिड़िया गौरैया का बसेरा हमारे घर के आंगन हुआ करते थे।लेकिन आधुनिकता और विकास के चलते हमने ईंट पत्थरों के घर बना डाले और इस निरीह प्राणी से उसका नैसर्गिक आवास छीन लिया।हमारी आधुनिक जीवन शैली और पर्यावरण के प्रति उदासीनता के कारण ही आज गौरैया हमारे आंगन से दूर हो गई है। यद्यपि हम सबके घर तो बड़े हो गए हैं। पर इन घरों में रहने वाले वालों के दिल इतने छोटे हो गए हैं कि उसमें नन्ही सी चिड़िया गौरैया के लिए जगह नहीं। घर घर की चिड़िया गोरैया आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। सुजीत कुमार को
वर्ष 2016 में प्रदेश सरकार के वन एवं वन्य जीव विभाग के प्रमुख सचिव संजीव सरन द्वारा सुजीत को गौरैया दिवस पर सम्मानित किया गया था। सुजीत लगभग 18 वर्षों से निस्वार्थ भाव से गौरैया पालन कर रहे है। इस समय इनके घर में लगे सौ से अधिक घोंसलों में सैकड़ों गौरैया घोसला बनाकर रह रही है। नन्ही चिड़िया गौरैया के प्रति सुजीत के समर्पण के कारण क्षेत्र में यह लोगों के बीच स्पैरोमैन के नाम से प्रसिद्ध है।सुजीत कुमार गौरैया संरक्षण और संवर्धन में और भी अधिक विस्तृत रूप से कार्य करना चाहते हैं। लेकिन बजट के अभाव में वैसा नहीं कर पा रहे हैं।इस अवसर पर नंदलाल जायसवाल, उत्तम राय, दीपक सिंह,चंद्रमति यादव, महेश गौर, वर्षा श्रीवास्तव, नूर जाफर, सुमन, मिथुन राय इत्यादि मौजूद रहे।