संतान द्वारा दी जा रही मानसिक पीड़ा का दर्द दिखा गया नाटक चीफ की दावत।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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मौजूदा समाज का आईना है भीष्म साहनी की चीफ की दावत। डा. रामेंद्र सिंह।
उत्थान उत्सव के दूसरे दिन हुआ नाटक चीफ की दावत, बुजुर्गों का तिरस्कार करने वाली संतान पर किया कटाक्ष।
विकास शर्मा के नाटक चीफ की दावत में दिखी बूढ़ी मां की बेबसी।
बच्चों के रुखेपन के कारण तड़पती मां की कहानी चीफ की दावत का हुआ मंचन।
कुरुक्षेत्र 26 सितम्बर : अपनी संतान द्वारा तिरस्कृत और मानसिक पीड़ा झेलने वाले बुजुर्गों की दयनीय दशा पर हिंदी के कईं कहानीकारों ने अपनी लेखनी चलाई है। भीष्म साहनी की कहानी चीफ की दावत भी इसी कड़ी की एक संवेदनशील रचना है। आज के इस उपभोक्तावादी युग में अधिकाधिक धन, यश, आराम आदि ही जीवन का चरम लक्ष्य माना जाता है। ऐसी हालत में पारीवारिक मूल्य खत्म होते जा रहे हैं और मां-बाप अपनी संतान द्वारा उपेक्षित हो जाते हैं। चीफ की दावत मौजूदा समाज का ही आईना है। ये कहना था विद्या भारती संस्कृति शिक्षण संस्थान के निदेशक डा. रामेंद्र सिंह का। न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप के 14वें वार्षिक उत्सव के दौरान कहानी मंचन चीफ की दावत के दौरान उन्होंने अपने विचार सांझा किए। न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत तथा भीष्म साहनी द्वारा लिखित कहानी चीफ की दावत का निर्देशन रंगकर्मी विकास शर्मा द्वारा किया गया। कला एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग, हरियाणा, उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र पटियाला तथा हरियाणा कला परिषद अम्बाला मण्डल के संयुक्त सहयोग से आयोजित उत्थान उत्सव के दूसरे दिन मुख्यअतिथि के रुप में विद्या भारती संस्कृति शिक्षण संस्थान के निदेशक डा. रामेंद्र सिंह तथा विशिष्ट अतिथि समाजसेवी जयभगवान सिंगला उपस्थित रहे। मंच का संचालन डा. मोहित गुप्ता ने किया।
नाटक में आधुनिकता के रंग में डूबकर अपने माता-पिता का तिरस्कार करने वाले बच्चों के ऊपर करारा कटाक्ष किया गया। सूत्रधार के माध्यम से शुरु हुई नाटक की कहानी शामनाथ के इर्दगिर्द घूमती है, जहां अपने बॉस को खुश करने के लिए शामनाथ उन्हें घर पर दावत के लिए आमंत्रित करता है। लेकिन अपनी मां के अनपढ़ व गांव की होने के कारण उसे बॉस के सामने आने से मना कर देता है। मां दावत के लिए अपनी सहेली के घर जाने की बात करती है तो बेटा घर से बाहर जाने से मना कर देता है। बेटे के तिरस्कार और बहू की डांट के आगे मां कुछ नही बोल पाती। घर में शामनाथ के बॉस आ जाते हैं। शामनाथ तरक्की पाने की चाह में अपने चीफ को खुश करने के लिए कोई कमी नहीं छोड़ता। मंहगी व्हीस्की और बढ़िया डिनर होने के बाद जब कहानी जब आगे बढ़ती है तो अचानक बॉस की नजर शामनाथ की मां पर पड़ती है। शामनाथ से बॉस जब बूढ़ी औरत के बारे में पूछते हैं, तो शामनाथ बताता है कि वह उसकी मां है। अनपढ़ और गांव की होने के कारण मां सबके सामने नहीं आना चाहती थी। मां को देखकर चीफ बहुत खुश होते हैं, और मां से ढ़ेर सारी बातें करते हैं। मां का बॉस से मिलना शामनाथ की तरक्की में सहायक सिद्ध होता है। बॉस मां को एक फुलकारी बनाने को कहते हैं, मां के मना करने पर भी शामनाथ फुलकारी के लिए हां कर देता है। लेकिन जब बॉस के जाने के बाद मां मना करती है, तो शामनाथ मां को फटकार लगाता है और बुरा भला कहना शुरु कर देता है। ऐसे में मां अकेली पड़ जाती है और बेटे के तिरस्कार से आहत होकर अपने प्राण छोड़ देती है। सूत्रधार कहानी का मूल अंत दिखाने के बाद दर्शकों से रुबरु होकर एक और अंत दिखाता है जिसमें शामनाथ को अपने किए पर शर्मिदंगी होती है, और वह मां से माफी मांगता है। मां अपने बेटे और बहू को माफ कर देती है और इस प्रकार नाटक का सुखद अंत होता है। चीफ की दावत में मां की भूमिका में राजकुमारी शर्मा और बेटे शामनाथ की भूमिका में सागर शर्मा ने अपने अभिनय कौशल दिखाए। सूत्रधार अनुराग यदुवंशी रहे। वहीं शामनाथ की पत्नी निशा के किरदार में निकेता कौशिक, चीफ गौरव दीपक जांगड़ा, श्रीमती बॉस मनू महक माल्यान, नौकर फतेह रहे। सहायक कलाकारों में राजीव कुमार, चंचल शर्मा, पार्थ शर्मा रहे। संगीत आकाशदीप ने दिया तथा प्रकाश व्यवस्था लालचंद ने सम्भाली। अंत में न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप के अध्यक्ष नीरज सेठी, सदस्य शिवकुमार किरमच, नरेश सागवाल तथा धर्मपाल गुगलानी ने सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किया।