दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वारा श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस में कथा व्यास साध्वी भाग्य श्री भारती जी ने बताया कि संसार के रिश्ते स्वार्थ की नींव पर टिके होते हैं वह सदा साथ नहीं निभाते इसलिए आवश्यकता है उस ईश्वर को जानने की।
फिरोजपुर 28 सितंबर [कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता]=
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस में दीप प्रज्वलित की रस्म श्री रोहित वोहरा शिरोमणि अकाली दल, एडवोकेट पृथ्वी पूगल महावीर मंदिर कमेटी, दरबारा सिंह जी, श्री मोहित दल बीजेपी, श्री प्रवीण शर्मा, जी द्वारा की गई कथा व्यास साध्वी भाग्य श्री भारती जी ने गजेन्द्र प्रसंग सुनाते हुए बताया कि गजेन्द्र की कहानी प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का प्रतीक है। आज का इंसान भी तो इस संसार में आकर संसार के भोग-विलासो में, रिश्तों-नातों में ही मस्त रहता है। किन्तु जब काल आक्रमण करता है तो कोई भी साथ नहीं देता। क्योंकि संसार के जो रिश्ते हैं, वह स्वार्थ की नींव पर टिके होते हैं। जो सम्बन्ध स्वार्थ की नींव पर टिके होते हैं वह सदा साथ नहीं निभाते। इसलिए क्यों न एक ऐसे शाश्वत रिश्ते की तलाश की जाए, जो ज़िन्दगी को एक मजबूत आधार दे, सुरक्षा दे। जिसके टूट जाने का भय न हो। जो निर्भयता प्रदान कर सके और निर्भयता वही प्रदान कर सकता है, जो स्वयं निर्भय हो। इस संसार में यदि कोई पूर्ण रूपेण निर्भय है तो वह केवल ईश्वर है। इसलिए आवश्यकता है उस ईश्वर को जानने की।
आगे प्रसंग के अंतर्गत साध्वी जी ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण निराकार ब्रह्म है, जो अधर्म ,पाप , अत्याचार के बोझ तले दबी वसुंधरा पर त्रस्त जनमानस की करुण पुकार सुनकर धर्मस्थापना हेतु धरा पर अवतरित होते है। क्योंकि कंस अज्ञानता और तमस्क्रांत साम्राज्य का प्रतीक है। जो मानव मन में जड़े जमाता है, विचारों को संकीर्ण बनाकर बाहरी परिवेश में धर्म के नाम पर हिंसा, जाति पाति के भेद भाव जैसे रूपों में मानव को मानवता से वंचित कर पतन की और मोड़ता है। साध्वी जी ने बताया जिस प्रकार प्रकाश से दूर रहना ही अंधकार है उसी प्रकार प्रभु से दूर रहना ही दुख, संताप व् क्षोभ का कारण है। अवतार शब्द का अर्थ बताते हुए उन्होंने बताया कि अवतार का अर्थ है नीचे उतरना। अपनी परम अवस्था से जन कल्याण के लिए धरा पर उतरा परम तत्व ही ईश्वर अर्थात् अवतार कहलाता है। जहां एक मानव अपने कर्म बंधनों में जकड़ा हुआ, अपने कर्मों के फल को भोगने के भोगने के लिए इस धरती पर आता है, वहीं पर वह ईश्वर अपनी योग माया के द्वारा प्रकृति को अधीन कर, मानव को सही राह दिखाने के लिए इस धरती पर आते हैं। उन्हें पहचान वही पाता है जिनकी बुद्धि श्रद्धा से पूरित होती है, जो उन्हें तत्त्व से जान लेते हैं। तत्त्व भाव दिव्य दृष्टि के माध्यम से अपने अन्त: करन में परमात्मा का दर्शन करना। कथा में मुख्य यजमान के रूप में बलराम जी, दीपक जोशी, मानक दास, गगनदीप कोहली, शामिल हुए और प्रभु की कृपा को प्राप्त किया।