गोवर्धन की पूजा परिक्रमा करने वाला व्यक्ति दरिद्रता और तनाव से मुक्त रहता है: महंत सर्वेश्वरी गिरि।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
गोवर्धन पूजा का महत्व।
पिहोवा : पिहोवा के श्री गोविंदानंद ठाकुरद्वारा आश्रम में आज महामंडलेश्वर 1008 स्वामी विद्या गिरि जी महाराज एवं महंत बंशी पुरी जी महाराज के सानिध्य मार्गदर्शन में आश्रम की महंत सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने संगत के साथ गोवर्धन पूजा अर्चना और परिक्रमा की साथ में अन्नकूट महोत्सव भी मनाया गया।
महंत सर्वेश्वरी गिरि ने गोवर्धन पर्वत की पूजा और परिक्रमा के महत्व के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इसे देश के कुछ हिस्सों में अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण, गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा के दिन 56 या 108 तरह के पकवानों का श्रीकृष्ण को भोग लगाना शुभ माना जाता है। इन पकवानों को ‘अन्नकूट’ कहते हैं।
गोवर्धन पूजा की कहानी
जब भगवान श्री कृष्ण ने बृजवासियों को इंद्र की पूजा करते हुए देखा तो उनके मन में इसके बारे में जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। श्री कृष्ण की मां भी इंद्र की पूजा कर रही थीं। कृष्ण ने इसका कारण पूछा तब बताया गया कि इंद्र बारिश करते हैं, तब खेतों में अन्न होता है और हमारी गायों को चारा मिलता है। इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि हमारी गायें तो गोवर्धन पर्वत पर ही रहती हैं इसलिए गोवर्धन पर्वत की पूजा की जानी चाहिए। इस पर बृजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी तब इंद्र को क्रोध आया और उन्होंने मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। चारों तरफ पानी के कारण बृजवासियों की जान बचाने के लिए श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ उंगली पर उठा लिया लोगों ने उसके नीचे शरण लेकर अपनी जान बचाई। इंद्र को जब पता चला कि कृष्ण ही विष्णु अवतार हैं, तब उन्होंने उनसे माफी मांगी। इसके बाद श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पूजा के लिए कहा और इसे अन्नकुट पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
श्री कृष्ण खुद गाय चराते थे इसलिए उन्हें ग्वाला भी कहा जाता है। गोवर्धन पर्वत पर गायें चरती थीं इसलिए कृष्ण ने पर्वत को ही गायों के भरण पोषण का श्रेय दिया और उनकी पूजा करने के लिए बृजवासियों से आग्रह किया। गायों को चारा मिलने की बात पर ही गोवर्धन पूजा के लिए श्री कृष्ण ने कहा था क्योंकि उन्हें गायों से काफी ज्यादा लगाव था। गोवर्धन पूजा में गाय के गोबर से घर में पर्वत बनाकर पूजा आज भी की जाती है।
महंत सर्वेश्वरी गिरि ने बताया कि जब जब धर्म की हानी होती है तभी भगवान को धरती पर आना पड़ता है चाहे किसी भी रूप में आए।
गोवर्धन पूजा करने वाले को कभी भी धन की कमी नही रहती और वह तनाव से भी मुक्त रहता है।
आश्रम में चल रही श्री मद भागवत में आज श्री कृष्ण जन्म प्रसंग महंत जी ने सुनाया।
गोवर्धन पूजा में महंत बंशी पुरी जी महाराज, वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक, स्वामी आशुतोष पुरी मौजूद रहे।
कथा के मुख्य यजमान आशीष चक्रपाणि , नीलमा चक्रपाणि,सचिन ऋषियान,गीता ऋषियान, शैली ,सुशील गुप्ता और महिला मंडली उपस्थित रही।
सभी ने महंत बंशी पुरी जी महाराज और महंत सर्वेश्वरी गिरि जी से आशीर्वाद प्राप्त किया।