विकसित भारत @2047 के राष्ट्र कल्याण के लक्ष्य को साकार करने में युवा अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं : प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान।
वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
कुरुक्षेत्र : विकसित भारत @2047 के लिए विचार, विषय पर श्रीकृष्ण आयुष विश्वविद्यालय में गुरुवार को विचार संगोष्टी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान रहे। इस विचार संगोष्ठी में सभी शिक्षकों और शिक्षार्थियों ने मुक्त कंठ से भविष्य का भारत कैसा होना चाहिए, इस विषय पर अपने विचार साझा किए। कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान ने श्रोतागणों को सम्बोधित करते हुए कहा कि युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को भारत और दुनिया के उत्थान के पीछे प्रेरक शक्ति के रूप में माना है। उनका मानना था, कि अगर युवाओं के भीतर छिपी शक्ति का उपयोग किया जाए और उसे महान आदर्शों की ओर निर्देशित किया जाए, तो समाज में गहरा परिवर्तन आ सकता है। वहीं युवा भारत को कैसा देखना चाहते हैं, यह उनके स्वयं के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। इसलिए उनकी कल्पना और नीति के अनुसार कार्यक्रम बनाने चाहिए। उन्होंने कहा कि वर्तमान दौर में युवाओं के अंदर नौकरी-पेशा को लेकर काफी उत्साह देखने को मिलता है, आर्थिक दृष्टिकोण से उचित लगता है, मगर विकास के बहुत से पैमाने पर अभी भी काम करने की आवश्यकता है। देश के हर नागरिक को यह प्रण जरुर लेना चाहिए कि वह देश में बनी वस्तुओं का ही उपयोग करेगा। इससे देश का पैसा भी देश में ही रहेगा और देश आत्मनिर्भर बनेगा। इसके साथ हमारा एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए, देश कर्ज मुक्त हो, अपने संसाधनों पर ही जीवित रहेंगे, तो भारत देश 2027 तक विकसित हो पाएगा। कुलसचिव डॉ. नरेश भार्गव ने कहा कि भारत बहुत बड़ा देश है, भौगोलिक दृष्टि से भी और जनसंख्या के मामले में भी। अधिक जनसंख्या कुछ संदर्भों में अभिशाप हो सकती है मगर ज्यादातर मामलों में भारत के लिए वरदान ही साबित हो रही है। युवा आबादी की बदौलत ही आज भारत पुनः नीत नए इतिहास रच रहा है। भारतीय संस्कृति और संस्कारों पर गर्व करना, इसके साथ ही देश के संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन अगर करेंगे तो भारत को विश्व गुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता। प्रोक्टर डॉ. अनिल शर्मा ने कार्यक्रम के अन्त में सभी गणमान्यों का आभार प्रकट किया। इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक डॉ. सुधिर मलिक, डॉ. जेके पांडा व अन्य उपस्थित रहे।