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वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
कृषि वैज्ञानिक डा. सी.बी. सिंह ने कहा प्राकृतिक खेती के लिए वास्तविक धरातल पर काम की आवश्यकता है।
कुरुक्षेत्र, 31 मई : कृषि वैज्ञानिक डा. सी.बी. सिंह ने कहा कि आज बहुत से जागरूक वैज्ञानिक प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। वे जलवायु परिवर्तन और मिट्टी के क्षरण से निपटने के लिए प्राकृतिक खेती की आवश्यकता पर जोर देते हैं। उन्होंने कहा कि मिट्टी की उर्वरता में कमी और खाद्य फसलों में पोषण में कमी के कारण प्राकृतिक खेती ही एकमात्र विकल्प है। अगर हम जलवायु परिवर्तन और मिट्टी के क्षरण से बचना चाहते हैं तो हम इसमें और देरी नहीं कर सकते हैं। प्राकृतिक खेती प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठा कर की जाती है ताकि स्वस्थ भोजन उगाया और खाया जा सके। मिट्टी में फसल पैदा करने की क्षमता बनी रहे। डा. सिंह ने कहा कि हमें जैविक और प्राकृतिक खेती के बीच के अंतर को समझना चाहिए। जैविक खेती जैविक रूप से संसाधित सामग्री जैसे जैव-उर्वरकों के इस्तेमाल की अनुमति देती है। यह उच्च उपज देने वाली किस्मों के इस्तेमाल की भी अनुमति दे सकती है। लेकिन जब हम प्राकृतिक खेती की बात करते हैं, तो इसमें स्वदेशी बीजों और स्थानीय रूप से उपलब्ध हर चीज का इस्तेमाल होता है। हम खाद को मौके पर ही तैयार करते हैं और खाद की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पशुपालन को एकीकृत करते हैं। यह पारिस्थितिकी को संरक्षित करने और इसे पूरी क्षमता से उपयोग करने के बारे में है। हम रसायनों के अत्यधिक उपयोग के कारण मिट्टी की उर्वरता खो रहे हैं। डा. सिंह ने कहा कि जब तक केवल कुछ लोग ही प्राकृतिक खेती करते रहेंगे, तब तक आपूर्ति विषम रहेगी और कीमतें ऊंची रहेंगी। देसी बीजों के उपयोग और मिट्टी की खराब सेहत के कारण उपज शुरू में कम हो जाती है। इसलिए मिट्टी की उर्वरता को फिर से पैदा करने में कुछ समय लगेगा। एक बार जब प्राकृतिक रूप से उत्पादित फसल की आपूर्ति बढ़ जाती है, तो कीमतें कम होने लगती हैं।
कृषि वैज्ञानिक डा. सी.बी. सिंह।