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वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
मनुष्य शरीर पांच तत्वों से बना है, पंच तत्वों से इस समस्त सृष्टि का निर्माण हुआ है, अखंड पंच धूणी अग्नि तपस्या में पंच तत्वों की ही साधना है।
कुरुक्षेत्र, 31 मई : तीर्थों की संगम स्थली एवं धर्मनगरी के जग ज्योति दरबार में भीषण गर्मी में महंत राजेंद्र पुरी की अखंड पंच धूणी अग्नि तपस्या निरंतर जारी है। अग्नि तपस्या के नौवें दिन भी भारी संख्या में श्रद्धालु आस्था एवं भक्ति भाव के साथ पहुंचे तो महंत राजेंद्र पुरी ने करीब दो दशक से की जा रही अग्नि तपस्या के महत्व के बारे में बताया कि वह सनातन धर्म की आवाज बुलंद करने, विश्व शांति एवं जनकल्याण के लिए आग उगलती गर्मी में अग्नि तपस्या कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अखंड पंच धूणी अग्नि तपस्या का महत्व बहुत गहरा है। तपस्या में पांच अग्नि ढेर संदेश देते हैं कि मनुष्य शरीर पांच तत्वों से बना है तथा पंच तत्वों के द्वारा इस समस्त सृष्टि का निर्माण हुआ है। महंत राजेंद्र पुरी ने कहा कि भीषण गर्मी के मौसम में जब लोग अपने घरों में कैद हो जाते हैं तथा तापमान 45 डिग्री पार चला जाता है। गरम हवा के थपेड़े पड़ते हैं तब संत महापुरुष मानव समाज कल्याण के लिए हठ योग से अपने शरीर की सीमाओं के पार चले जाते हैं। उन्होंने बताया कि अग्नि पंच महाभूतों में से एक है। इन पंच महाभूतों से ही पूरी सृष्टि का सृजन हुआ है। यदि इन तत्वों को सिद्ध कर लिया जाए तो पूरे संसार में कुछ भी असंभव नहीं है। महंत राजेंद्र पुरी ने कहा कि वे कई वर्षों से यह साधना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो प्रभु की इच्छा होती हैं वही होता है। उनकी साधना विश्व शांति के साथ नशा मुक्ति एवं पर्यावरण की शुद्धि के लिए भी है। महंत राजेंद्र पुरी ने अग्नि तपस्या के दौरान ही तम्बाकू निषेध दिवस पर श्रद्धालुओं को नशा मुक्ति की शपथ भी दिलाई। महंत राजेंद्र पुरी ने बताया कि वे अपने चारों तरफ गौ माता के गोबर के कंडे के पंच कुंड बनाकर अग्नि प्रज्वलित करते हैं। इस मौके पर अग्नि तपस्या में भजन संकीर्तन भी हुआ। इस अवसर पर बलराम स्मलेहडी, पवन शर्मा कैथल, चेतन शर्मा, नवीन शर्मा पाई, वीरेंद्र सिरसला, शुभम लाड़वा, मनप्रीत सिंह छापर, गुरदीप सिंह शाहाबाद, कमल सैनी, राकेश टोनी पिहोवा, संजय शर्मा पूर्व पार्षद, बिट्टू शर्मा, सुरेश शर्मा पिहोवा तथा जंग सिंह श्रीनगर इत्यादि ने अग्नि तपस्या सेवा में सहयोग किया।
अखंड पंच धूणी अग्नि तपस्या करते हुए महंत राजेंद्र पुरी।