दिव्या ज्योति जागृती संस्थान द्वारा प्राचीन शिवालय मंदिर में श्री कृष्ण कथा का किया गया आयोजन

फिरोजपुर 13 जून {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा प्राचीन शिवालय मन्दिर,नाथांवाला, श्री गंगानगर में आयोजित कृष्ण कथा में कथा व्यास साध्वी सुश्री सोनिया भारती जी ने अपने प्रवचनों में बताया कि भगवान श्री कृष्ण जब धर्म की स्थापना करने हेतु द्वापर युग में अवतार धारण करते हैं तब उन्होंने कितने ही भक्तों का उद्धार किया और राक्षसों का वध कर इस धरा को अधर्म और अन्याय से स्वतंत्र किया । उसी दौरान जब भगवान श्री कृष्ण शांति प्रस्ताव लेकर के हस्तिनापुर में जाते हैं और जब राजमहल में पहुंच कर यह प्रस्ताव धृतराष्ट्र के समक्ष रखा, तो उस समय दुर्योधन बीच में बोलता है कि मुझे युद्ध करना स्वीकार है लेकिन मैं पांडवों को सुई की नौक जितनी भी जगह नहीं दूंगा ।श्री कृष्ण उसे समझाते हैं परंतु दुर्योधन समझा नहीं, क्योंकि उसके भीतर अहंकार था, अभिमान था। अभिमान, अहंकार होने के कारण ही वह भगवान श्री कृष्ण के शब्दों को समझ नहीं पाया और वह इंकार कर देता है। वह पांडवों को आधा राज्य नहीं देता है और इसके बाद प्रभु विदुर की कुटिया में जा कर उसका रुखा सुखा भोजन ग्रहण करते हैं ।प्रभु ने यहां पर इस लीला के द्वारा मानव जाति को समझाया कि इंसान जो प्रभु को सच्चे हृदय से प्रेम करता है, भगवान अवश्य ही उसकी भावनाओं को स्वीकार करते हैं। लेकिन यहां पर एक समझने योग्य बात है कि यदि भगवान अपने भक्तों से प्रेम करते हैं, तो भक्त भी उनसे सच्चा प्रेम करते हैं। लेकिन भक्तों का प्रेम प्रभु से कब होता है जब वह भगवान को जान लेते हैं। कारण क्योंकि भगवान मानने का नहीं जानने का विषय है। उसको जाना जा सकता है, उसे देखा जा सकता है। हमारे जितने भी महापुरुष है वो सभी यही समझा रहे हैं कि परमात्मा को यदि प्राप्त करना है तो सर्वप्रथम उसे जानने की आवश्यकता है। और जानेगे कैसे? जब हमारे जीवन में एक तत्ववेता गुरु का आगमन होगा। फिर उनकी कृपा से हम भगवान को जानेंगे। परंतु जब तक उन्हें जाना नहीं है, तब तक हमारी भक्ति में पूर्णता नहीं आ सकती ।तभी कबीर महाराज बहुत अच्छी बात कहते हैं कि यदि हमने उस एक अर्थात भगवान को जान लिया तो समझे सब कुछ जान लिया। यदि हमने एक भगवान को नहीं जाना, तो सब कुछ जानते हुए भी हम अनजान हैं। स्वामी रामतीर्थ जी से किसी युवती ने प्रश्न किया था कि भगवान मिस्टर है, मिसेज है या मिस है तो उस समय स्वामी रामतीर्थ जी ने बहुत महान सूत्र मानवजाति को प्रदान करते हुए उस युवती को कहा कि भगवान न तो मिसटर है, ना मिसेज है, ना ही मिस है। वह तो मिस्ट्री है।और इस रहस्य को उजागर एक गुरु ही करते हैं। इसलिए गुरु की शरणागत होने की आवश्यकता है। साध्वी जी ने कथा के दौरान सुदामा प्रसंग सुनाकर सच्ची मित्रता का अर्थ समझाया।साध्वी बहनों ने भजन संकीर्तन के द्वारा प्रभु भक्तों को मंत्रमुग्ध किया। कथा का समापन प्रभु की पावन आरती से हुआ।

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