हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कुरुक्षेत्र, 3 अगस्त : श्रावण मास की शिवरात्रि पर शनिवार को भी जिले के सभी शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक किया गया। हरिद्वार से कावड़ लाए कांवड़ियों ने सर्वप्रथम जलाभिषेक किया उसके बाद शिव भक्तों ने लंबी लाइनों में अपने शिव के दीदार के लिए खड़े होकर अपनी बारी पर जलाभिषेक किया और परिवार के लिए सुख की कामना की। मंदिर के पुजारी पंडित सुशील शास्त्री ने बताया कि शिवपुराण की कथा के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ था, तो उसमें से सबसे पहले विष निकला था। उस विष के कारण पूरे संसार पर संकट छा गया क्योंकि वह देव, मनुष्य, पशु-पक्षी आदि सभी के जीवन के लिए हानिकारक था। अब समस्या यह थी कि उस विष का क्या होगा? इस संकट का क्या हल है? तब देवों के देव महादेव ने इस संकट से पूरी सृष्टि को बचाने का निर्णय लिया। उन्होंने उस पूरे विष को पीना शुरू कर दिया, उसी समय माता पार्वती ने उस विष को भगवान शिव के कंठ में ही रोक दिया। इस वजह से वह विष शिवजी के कंठ में ही रह गया और शरीर में नहीं फैला। विष के कारण शिवजी का कंठ नीला हो गया, जिस वजह से शिवजी को नीलकंठ भी कहते हैं। विष का प्रभाव भगवान शिव पर न हो, इसके लिए सभी देवों ने उनका जलाभिषेक किया। इस वजह से शिवजी अतिप्रसन्न हुए। यह घटना सावन माह में हुई थी। इस वजह से हर साल सावन माह में भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया जाता है, ताकि वे प्रसन्न हों और उनकी कृपा प्राप्त हो।
दुखभंजन मंदिर में शिवलिंग पर जल चढ़ाते शिव भक्त।