अध्यात्म रक्षा संघ द्वारा धूमधाम से मनाई गई गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज की जयंती

सेंट्रल डेस्क संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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वृन्दावन : परिक्रमा मार्ग स्थित श्रीललिता आश्रम में अखिल भारतीय अध्यात्म रक्षा संघ के तत्वावधान में राम चरित मानस के रचियता गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज की जयंती श्रावण शुक्ल सप्तमी को संत, विद्वानों , भागवताचार्यों की उपस्थिति में बड़ी ही धूमधाम से मनाई गई।सर्वप्रथम संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य रामनिहोर त्रिपाठी एवं सभी उपस्थित जनों ने गोस्वामी तुलसीदासजी महाराज के चित्रपट का पूजन अर्चन विधि-विधान से विद्यार्थियों के द्वारा वेद मंत्रों के साथ किया गया।साथ ही राष्ट्रीय संरक्षक पंडित बिहारीलाल वशिष्ठ, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी, कृष्ण कन्हैया पदरेणु, कपिल आनंद चतुर्वेदी, विष्णु ब्रजवासी आदि ने दीप प्रज्ज्वलित करके संगोष्ठी का शुभारंभ किया।
इस अवसर पर मानस मंदिर के अध्यक्ष बालेंदु भूषण गोस्वामी ने कहा कि श्रीराम चरित मानस प्रत्येक मानव मात्र के लिए परम उपयोगी है। इसमें लिखे दोहा, सोरठा, छंद के अनुसार यदि मानव उनका अनुसरण करता है, तो वो सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है।
पंडित अशोक व्यास महाराज ने कहा कि श्रीराम चरित मानस मावन से मानव को जोड़ने का कार्य करती है। श्रीराम चरित मानस सनातन हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है ,जिसके पठन, पाठन से जीव को शांति प्राप्त होती है।
श्रीराम लीला संस्थान के आचार्य पवन देव चतुर्वेदी ने कहा कि रामलीलाओं के माध्यम से राम चरित मानस का संदेश सम्पूर्ण भारत वर्ष के जन जन तक पहुंचा ने के लिए राम चरित मानस सबसे उपयोगी ग्रंथ है।
इस अवसर पर राष्ट्रीय संरक्षक पंडित बिहारीलाल वशिष्ठ एवं डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने ग्रहस्थ धर्म त्याग कर ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का श्री हनुमान महाराज की प्रेरणा से जो भगवान श्रीराम के दर्शन कर श्रीराम चरित मानस ग्रंथ का लेखन किया है,वो हम सभी के लिए प्रेरणा व ऊर्जा दायक है।
सभा के अंतर्गत अखिल भारतीय अधात्म रक्षा संघ के द्वारा
मानस मंदिर के अध्यक्ष आचार्य बालेंदु भूषण गोस्वामी, पंडित अशोक व्यास एवं पवन देव चतुर्वेदी को “तुलसी रत्न सम्मान” से अलंकृत किया गया।
संगोष्ठी में लालजी भाई शास्त्री, प्रमुख शिक्षाविद् आनन्द शर्मा, लक्ष्मीकांत कौशिक, मदन गोपाल बनर्जी, बालकृष्ण शर्मा उर्फ बालो पंडित, डॉ. गोपाल चतुर्वेदी, आचार्य ईश्वरचंद्र रावत आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।संचालन पंडित बिहारीलाल वशिष्ठ ने किया।

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