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साहित्यकारों की लेखनी से निकली है कई सफल फिल्में : त्रिखा।
कुरुक्षेत्र, 11 अगस्त : साहित्य और सिनेमा दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। साहित्य पर आधारित फिल्में हमेशा अच्छी होती हैं। साहित्य ने बाहुबली जैसी सफल कई फिल्में दी है । वर्तमान समय में साहित्य और सिनेमा में दूरी बढ़ी है जिसके कारण सिनेमा का स्तर कुछ नीचे आया है। हम यूं कह सकते हैं कि आजकल नकल ज्यादा हो रही है। यदि अच्छी फिल्मों का निर्माण करना है तो साहित्य से जुड़ना होगा क्योंकि भाषा संस्कार देती है। यह विचार साहित्य अकादमी के निदेशक माधव कौशिक ने रविवार को कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा के मार्गदर्शन में युवा एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम विभाग तथा संस्कृति सोसाइटी फॉर आर्ट्स एंड कल्चरल डेवलपमेंट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 7वें हरियाणा अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में ऑडिटोरियम हॉल में विद्यार्थियों से रूबरू होते हुए कहे। लोक सम्पर्क विभाग के निदेशक प्रो. महासिंह पूनिया ने माधव कौशिक व डॉ. चंद्र त्रिखा से साहित्य, सिनेमा और समाज पर आधारित प्रश्न पूछे।
इस अवसर पर उनके साथ मौजूद हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. चन्द्र त्रिखा ने कहा कि साहित्यकारों की लेखनी से कई सफल फिल्में निकली है जिसमे नदिया के पार, देवदास, तमस, चित्रलेखा जैसी अनेक फिल्में दी है । साहित्य पर आधारित फिल्में बनना अत्यंत आवश्यक है। यह फिल्में संस्कारवान होती हैं और जिन्हें देखकर दर्शकों को जीवन में कुछ करने की प्रेरणा मिलती है। उन्होंने देवदास फिल्म का उदाहरण देते हुए कहा कि यह फिल्म लगभग 20 बार बन चुकी है। इससे ज्यादा साहित्य पर आधारित फिल्म का क्या उदाहाण हो सकता है। यदि फिल्म निर्माण से जुड़े लोग अच्छे साहित्य पर आधारित फिल्म का निर्माण करें तो निश्चित तौर पर वह फिल्म दर्शकों के बीच प्रसिद्धि प्राप्त करेगी। उन्होंने कहा कि साहित्य, सिनेमा पर तो चर्चा की जा सकती है। समाज पर चर्चा करने के लिए बहुत समय चाहिए क्योंकि समाज पल-पल बदल रहा है। माधव कौशिक ने कहा कि वर्तमान समय में सिनेमा जगत में साउथ की फिल्मों की कापी की जा रही है। यदि हमें अपनी जड़ो से जुड़े रहना है तो जरूरत है साहित्य पर आधारित फिल्मों का निर्माण हो। फिल्म निर्माण से जुड़े लोग अच्छे साहित्यकारों से सम्पर्क करें। यदि समाज के हित में लिखे साहित्य पर आधारित फिल्मों का निर्माण होगा तो समाज व देश को लाभ अवश्य होगा।
उन्होंने इस बात पर प्रशंसा व्यक्त की कि वर्तमान समय में आंचलिक भाषाओं पर भारी संख्या में फिल्मों का निर्माण हो रहा है जिससे आंचलिक साहित्य के लेखन में काम हो रहा है। साहित्य और सिनेमा एक दूसरे के पूरक हैं। यदि सिनेमा से साहित्य को अलग किया जाता है तो सिनेमा का स्तर कम हो जाता है।