स्वरोजगार के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक प्रभावी उपकरण : प्रो. सोमनाथ सचदेवा।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

कुवि के अर्थशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ शुभारंभ।

कुरुक्षेत्र, 29 अगस्त : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सोमनाथ सचदेवा ने कहा कि युवाओं को स्वरोजगार के लिए तैयार करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति एक प्रभावी उपकरण बनेगी। एनईपी 2020 के तहत निर्धारित सभी प्रोग्राम्स में अब इटर्नशिप अनिवार्य की गई है जिसके मद्देनजर यह आयोजन निश्चित रूप से विद्यार्थियों को स्वरोजगार तथा जीवन में आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करेगा। वे गुरुवार को अर्थशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित तथा भारतीय आर्थिक संघ द्वारा अकादमिक रूप से समर्थित आईसीएसएसआर द्वारा प्रायोजित विजन 2047ः सतत विकास लक्ष्यों को भारत की विकास आकांक्षाओं के साथ जोड़ना विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। इससे पहले उद्घाटन सत्र दीप प्रज्वलन तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलगीत के साथ प्रारंभ हुआ।
कुलपति प्रो. सोमनाथ ने कहा कि युवाओं में कौशल-विकास के द्वारा रोजगार एवं स्वरोजगार के नए अवसर पैदा किए जा सकते हैं। स्वरोजगार के द्वारा हम भारत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा सकते हैं।
संगोष्ठी निदेशक एवं अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. अशोक चौहान द्वारा दिए गए स्वागत भाषण के पश्चात प्रो. संजीव बंसल द्वारा वर्तमान संगोष्ठी के विषय तथा प्रासंगिकता के बारे में बताया गया। साथ ही, सार-संक्षेप पुस्तिका का भी अनावरण किया गया।
मुख्य अतिथि प्रो. अश्वनी महाजन, राष्ट्रीय संयोजक, स्वदेशी जागरण मंच ने विकसित भारत के सपने को साकार करने की संभावनाओं को दर्शाया। उन्होंने कहा कि नागरिकों के कल्याण का मतलब यह नहीं है कि सामान/सेवाएं मुफ्त में उपलब्ध होंगी क्योंकि मुफ्त में उपलब्ध होना अच्छा अर्थशास्त्र नहीं है। रोजगार सृजन के साथ विकास और बहुआयामी गरीबी का उन्मूलन एसडीजी को भारत की विकास आकांक्षाओं के साथ जोड़ने की कुंजी है।
प्रोफेसर अशोक मित्तल, पूर्व कुलपति, डॉ. बी.आर. अंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा ने भारत में पैदा हुए जरूरत आधारित उपभोग के दर्शन को हमारी अर्थव्यवस्था की कई समस्याओं के समाधान के रूप में याद किया। उन्होंने सरकार द्वारा तैयार की गई सार्वजनिक नीतियों की सराहना की। उन्होंने इन नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी और उनकी उपलब्धियों के बारे में 4-5 वर्षों के भीतर ऑडिट करने की आवश्यकता का सुझाव दिया।
संगोष्ठी संयोजक डॉ. हेमलता शर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर द्वारा धन्यवाद ज्ञापन देने से पहले, गणमान्य व्यक्तियों को स्मृति चिन्ह भेंट किए गए। अंत में, राष्ट्रगान के साथ सत्र का समापन हुआ। इसके बाद ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों मोड में छह तकनीकी सत्र आयोजित किए गए, जिनमें लगभग 100 प्रतिभागियों ने विभिन्न उप-विषयों पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। इन सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः प्रोफेसर सुनील फोगाट, सीआरएसयू, जींद, प्रोफेसर दिनेश कुमार, सीसीएसयू, मेरठ, प्रोफेसर (सेवानिवृत्त) संतोष नांदल, एमडीयू, रोहतक, प्रोफेसर अभय गोदारा, सीडीएलयू, सिरसा, प्रोफेसर सोनू मदान, सीबीएलयू, भिवानी और प्रोफेसर सुप्रण कुमार शर्मा, एसएमवीडीयू, कटरा ने की। इन विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों की प्रस्तुतियों का गंभीरता से मूल्यांकन किया और उनके सवालों के जवाब दिए। इन सत्रों के दौरान अर्थशास्त्र विभाग के सभी संकाय सदस्य भी मौजूद रहे।

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