उपनिषदों में है भारतीय ऋषियों का अमृत मन्थन : डॉ. रामचन्द्र।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कुरुक्षेत्र, 16 अप्रैल :- उपनिषद भारतीय ऋषियों की विश्व को सर्वोच्च देन है। ग्यारह उपनिषदों में ऋषि-मुनियों की तपस्या एवं उच्चतम प्रज्ञा का अमृत मन्थन सुरक्षित है। इनमें मनुष्य, प्राणी एवं प्रकृति के सर्वकालिक संवर्धन का शाश्वत संदेश प्राप्त होता है। आध्यात्मिकता एवं आत्मनिर्भरता का उद्घोष उपनिषदों का मूल मन्त्र है। सदियों से उपनिषदों का ज्ञान दुनिया भर के बड़े-बड़े विचारको और शिक्षाविदों के साथ आम व्यक्ति तक भी सरसता का आलोक प्रसारित करता आ रहा है। इनमें ब्रह्म, जीव एवं प्रकृति का वास्तविक स्वरूप प्रकट किया गया है। आचार्य शंकर के अद्वैतवाद एवं महर्षि दयानन्द के त्रैतवाद का मूलाधार भी उपनिषदों में प्राप्त होता है यह विचार विश्व प्रसिद्ध वेद संस्थान दिल्ली द्वारा गुरुवार को ऑनलाइन माध्यम से आयोजित राष्ट्रीय व्याख्यानमाला के अंतर्गत ’छांदोग्य उपनिषद: एक अध्ययन’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में आईआईएचएस, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. रामचंद्र ने व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि छांदोग्य उपनिषद इस परंपरा का अमूल्य ग्रंथ है जिसमें उद्गीथ उपासना, साम उपासना, अग्निहोत्र, मधुविद्या, गायत्री रहस्य जैसे युगों से प्रेरणा देने वाले सन्देश प्राप्त होते हैं। नारद सनत्कुमार, रैक्व ऋषि एवं राजा अश्वपति के सन्दर्भ इस की मूल्यवान धरोहर है। सर्वं खलु ब्रह्म एवं तत्त्वमसि का कालजयी सन्देश भी छान्दोग्योपनिषद् में ही मिलता है। अज्ञात गोत्र के सत्यकाम जाबाल को स्वीकार करके उसे आचार्य बनाने का विलक्षण उदाहरण विश्व में दूसरा नहीं है। इस राष्ट्रीय व्याख्यान माला का संचालन डॉ. देवकृष्ण दाश ने किया। इसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय ख्याति की विदुषी डॉ उर्मिला रुस्तगी ने की। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में देशभर से विचारक, शिक्षाविद, लेखक, प्राध्यापक एवं शोधार्थी सम्मिलित हुए।