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संधारा तीज सुहागिनों का मुख्य पर्व है : डॉ. सुरेश मिश्रा

कुरुक्षेत्र, प्रमोद कौशिक 26 जुलाई : हार्मनी ऑकल्ट वास्तु जोन के अध्यक्ष और श्री दुर्गा देवी मन्दिर पिपली (कुरुक्षेत्र ) के पीठाधीश ज्योतिष व वास्तु आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को संधारा तीज मनाई जाती है।
कई जगह इसे कज्जली तीज या सिंधारा तीज भी कहते है I हरियाली तीज 27 जुलाई 2025 रविवार,चन्द्रमा सिंह राशि के और मघा नक्षत्र में धूमधाम से मनाई जाएगी। इस दिन सुहागन मां गौरी की पूजा करती हैं।
हरियाली तीज का व्रत सर्वप्रथम राजा हिमालय की पुत्री पार्वती ने रखा था। जिसके कारण उन्हें भगवान शिव जी स्वामी के रूप में प्राप्त हुए। इसलिए हरियाली तीज पर कुंवारी लड़कियां व्रत रखती हैं और अच्छे वर की प्राप्ति के लिए माता पार्वती से प्रार्थना करती हैं।
सुहागनें इस दिन उपवास रखकर माता पार्वती और शिव जी से सौभाग्य और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। हरियाली तीज के दिन ही भगवान शिव ने पार्वती जी को पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया। मान्यता है कि इस दिन जो भी कन्या पूरे श्रद्धा भाव से व्रत रखती है उसके विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं।
हरियाली सिंधारा तीज का व्रत :
इस दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और विधि-विधान से माता पार्वती और शिव जी की पूजा करती हैं। कथा सुनती हैं और पूजा करती है। कथा समापन के बाद महिलाएं मां गौरी से अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है। इसके बाद घर में उत्सव मनाया जाता है और भजन व लोक गीत गाए जाते हैं। यह व्रत करवा चौथ से भी ज्यादा कठिन होता है। महिलाएं पूरा दिन बिना भोजन और जल के ग्रहण किए रहती हैं और दूसरे दिन सुबह स्नान और पूजा के बाद व्रत का पारण करती हैं।
पारम्परिक संस्कृति :
हरियाली तीज पर बेटी की ससुराल में सिंधारा भेजने का रिवाज है। सिंधारे में साड़ी, श्रृंगार का सामान, मिठाई, आभूषण, मेहंदी, चूड़ियां, मठरी आदि भेजी जाती है। सावन के महीने में जब प्रकृति हरियाली से भर जाती है, तब हरियाली तीज मनाई जाती है। यह त्योहार प्रकृति की सुंदरता, ताजगी और जीवन में हरियाली लाने का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं हरे रंग के कपड़े पहनकर इसका स्वागत करती हैं।
इस दिन सुहागिनें स्त्रियाँ हरे रंग के सूट या साड़ी को पहनती है, हरी चुनरी व हरी चूड़ियाँ पहनना, सोलह श्रृंगार करना, मेहंदी लगाना , झूला-झूलने की और श्रावण मलहार गीत गाने की पारम्परिक संस्कृति भी है। इस दिन लड़कियों के मायके से श्रृंगार का सामान और मिठाइयां आती हैं। नव विवाहिताओं के लिए बहुत विशेष होता है।

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