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रक्षाबंधन केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक जीवनमूल्य एवं सनातन संस्कृति का संवाहक है – डा. श्रीप्रकाश मिश्र

रक्षा बंधन एवं श्रावणी पूर्णिमा के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा सनातन भारतीय धर्म एवं संस्कृति में विद्यमान मानवीय जीवन मूल्य विषय पर पर्व संवाद कार्यक्रम मातृभूमि सेवा मिशन के तत्वावधान में आयोजित।

सन् 1905 में बंगाल विभाजन के समय जब हिन्दू – मुस्लिम वैमनस्यता चरम पर आ रही थी तब गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने स्थिति सुधारने के लिए हिंदुओं मुस्लिमों द्वारा आपस में राखी बंधवाई थी, जिसे भाईचारा स्थापित हुआ था।

कुरुक्षेत्र 09 अगस्त :
सनातन धर्म में भाई- बहन के रिश्ते बहुत दिव्य है।
महान सनातन धर्म में रक्षाबंधन का पर्व केवल भाई बहन तक सीमित नहीं है परंतु बुनियाद वहीं से है। भाई बहन का रिश्ता अत्यंत पवित्र है, और रक्षाबंधन का रक्षा सूत्र उसका शिवत्व और अमरत्व है। सनातन धर्म में रक्षाबंधन का व्यापक स्वरूप है, जहां रक्त संबंधों से भी ऊपर उठकर धर्म के भाई बहनों ने उच्च आदर्श स्थापित किए। सनातन धर्म में भाई बहन के रिश्तों का अनूठा एवं गौरवमयी इतिहास वे। यह विचार रक्षा बंधन एवं श्रावणी पूर्णिमा के उपलक्ष्य में मातृभूमि शिक्षा मंदिर द्वारा सनातन भारतीय धर्म एवं संस्कृति में विद्यमान मानवीय जीवन मूल्य विषय पर आयोजित पर्व संवाद कार्यक्रम में मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ ईश वंदना से हुआ। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थियों ने रक्षाबंधन के उपलक्ष्य में गीत एवं कविताएं प्रस्तुत की।
पर्व संवाद को सम्बोधित करते हुए डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा इस दिन भगवान विष्णु और शिव जी दोनों की ही पूजा की जाती है। रक्षा बंधन का सामाजिक महत्व बहुत गहरा है। यह सिर्फ भाई-बहन के प्यार का त्यौहार नहीं है, बल्कि यह सामाजिक सद्भाव, सुरक्षा की भावना और आपसी रिश्तों को मजबूत करने का भी प्रतीक है। यह त्यौहार हमें सिखाता है कि हमें अपने रिश्तों को संजोना चाहिए और एक-दूसरे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाना चाहिए। रक्षाबंधन केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक जीवनमूल्य एवं सनातन संस्कृति का संवाहक है, जो प्रेम, त्याग, और भरोसे को दर्शाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि रिश्तों को सहेजना, निभाना और समय पर साथ देना सबसे बड़ी सामाजिक और आध्यात्मिक जिम्मेदारी है।रक्षाबंधन सिर्फ एक धागा नहीं, बल्कि एक ऐसा बंधन है जो दिलों को जोड़ता है और भारतीय संस्कृति की आत्मा को जीवित करता है। रक्षाबंधन पर्व का गौरव अंतहीन पवित्र प्रेम की कहानी से जुड़ा है। उड़ीसा में पुरी का सुप्रसिद्ध जगन्नाथ मन्दिर भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को समर्पित है। जहां सुभद्रा अपने भाई श्रीकृष्ण एवं बलराम के साथ है।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कहा
यह मानवीय सम्बन्धों की रक्षा के साथ-साथ राष्ट्रीयता को सुदृढ़ करने के संकल्पों का भी पर्व है। गुरु शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरु को। भारत में प्राचीन गुरुकुल काल में जब विद्यार्थी अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे। इसी परंपरा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिए परस्पर एक दूसरे को अपने बंधन में बांधते हैं।आधुनिक काल में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में रक्षाबंधन पर्व ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सन् 1905 में बंगाल विभाजन के समय जब हिन्दू – मुस्लिम वैमनस्यता चरम पर आ रही थी तब गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने स्थिति सुधारने के लिए हिंदुओं मुस्लिमों द्वारा आपस में राखी बंधवाई थी, जिसे भाईचारा स्थापित हुआ था। कार्यक्रम में नीतू सोलंकी, कीर्ति,महक, प्राची, ब्यूटी, शिवानी, रौशनी, प्रीति, ऋतु सहित अनेक बहनों ने मातृभूमि शिक्षा मंदिर के बच्चों को रक्षा सूत्र बांधा तथा सभी विद्यार्थियों के सर्वमंगल की प्रार्थना की। कार्यक्रम का समापन शांति पाठ से हुआ।

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