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आयुष विश्वविद्यालय के विद्यार्थी बनेंगे ‘रोग- निवारण दूत’,पांच गांवों की सेहत का जिम्मा उठाएंगे

आयुष विश्वविद्यालय के विद्यार्थी बनेंगे ‘रोग- निवारण दूत’,पांच गांवों की सेहत का जिम्मा उठाएंगे

विवि के आयुर्वेद अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान और थानेसर के पांच गांवों के बीच एमओयू हुआ।

कुरुक्षेत्र, संजीव कुमारी : कल्पना कीजिए,आपके गांव में जहां हर घर का अपना आयुर्वेदिक “गार्जियन” हो। जहां बीमारी के आने का इंतजार नहीं,बल्कि चिकित्सक खुद आपके घर-घर दस्तक देकर आपकी सेहत का जिम्मा उठाए, कैसा लगेगा। ऐसी ही अनोखी और प्रेरणादायक पहल की है श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय के आयुर्वेद अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान ने। आयुष विश्वविद्यालय ने थानेसर के पांच गांव को गोद लिया है,जिनमें BAMS के विद्यार्थी घर-घर दस्तक देंगे और एक-एक भावी चिकित्सक 12-12 परिवारों को गोद लेगा और उनकी सेहत का जिम्मा उठाएगा। यही नहीं, उनकी दिनचर्या, खानपान, रोगों के जोखिम, मानसिक तनाव, मौसम के अनुसार आहार, योग–प्राणायाम सबकी व्यक्तिगत गाइडलाइन तैयार करेंगे।
दरअसल,आयुष विश्वविद्यालय के आयुर्वेद अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान ने गांव कलाल माजरा,गांव बीड़ मथाना, गांव बीड़ पिपली, गांव फतुहपुर और गांव पलवल की ग्राम पंचायत के साथ एमओयू किया। इस अवसर पर संस्थान के प्राचार्य प्रो.आशीष मेहता, आयुर्वेदिक अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. राजा सिंगला, प्रो. शीतल सिंगला, डॉ. सुरेंद्र सिंह सहरावत, डॉ. मोहित शर्मा, गांव कलाल माजरा के सरपंच कुलदीप सैनी, बीड़ मथाना के सरपंच देवी दयाल, बीड़ पिपली की सरपंच भारती सैनी के पिता पूर्व सरपंच राजेश सैनी, गांव फत्तुपुर और गांव पलवल के सरपंच प्रतिनिधि, नंबरदार रामस्वरूप, बाली राम और रवि कुमार भी उपस्थित रहे।
सालभर का ब्लूप्रिंट तैयार करेंगे विद्यार्थी: प्रो.मेहता।
आयुर्वेद अध्ययन एवं अनुसंधान संस्थान के प्राचार्य प्रो. आशीष मेहता ने बताया कि यह मॉडल सिर्फ स्वास्थ्य शिविरों तक सीमित नहीं है, बल्कि एक लंबे समय की सामुदायिक हेल्थ मॉनिटरिंग व्यवस्था है। विद्यार्थी पूरे वर्ष गाँवों में जाकर घर-घर की सेहत का आकलन करेंगे, समय-समय पर शिविर लगाएंगे और स्थानीय स्वास्थ्य कर्मियों व आशा वर्कर्स को भी आयुर्वेदिक जीवनशैली पर प्रशिक्षित किया जाएगा।
गांव बनेंगे आयुर्वेद आरोग्यम ग्राम: प्रो.सिंगला।
आयुर्वेदिक अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. राजा सिंगला ने कहा कि उद्देश्य इन गांवों को “आयुर्वेद आरोग्यम ग्राम” के रूप में विकसित करना है। किशोर स्वास्थ्य, मातृ-शिशु देखभाल, वृद्धजनों की हेल्थ मॉनिटरिंग और स्कूल हेल्थ प्रोग्राम जैसी गतिविधियां भी निरंतर चलेंगी।
विद्यार्थियों को मिली “रोग-निवारण दूत” की अनूठी भूमिका : कुलपति।
कार्यक्रम की सराहना करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान ने कहा कि पहली बार किसी विश्वविद्यालय ने विद्यार्थियों को वास्तविक जीवन में रोग-निवारण दूत के रूप में उतारा है। यहां विद्यार्थी केवल पढ़ाई नहीं करेंगे, बल्कि सेवा, संवेदना और समुदाय के साथ गहरा जुड़ाव भी सीखेंगे। उन्होंने कहा कि यह पहल गांवों को “रोग- रहित ग्राम” बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।

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