अधर्म और अत्याचार के विरुद्ध भारतीय इतिहास अमर है साहिबजादों का बलिदान : डॉ. मेजर सिंह

साहिबजादों की शहादत अन्याय के विरुद्ध खड़े होने की देती है प्रेरणा: प्रो. तोमर।
आयुष विश्वविद्यालय में साहिबजादों की शहादत को किया गया नमन।
कुरुक्षेत्र (अमित ) 27 दिसंबर : श्री कृष्ण आयुष विश्वविद्यालय में कुलपति प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान के मार्गदर्शन में गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों की शहादत को स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता गुरुनानक स्कूल के प्राचार्य सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. मेजर सिंह ने शिरकत की, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलसचिव प्रो. ब्रिजेंद्र सिंह तोमर ने की। इस अवसर पर मुख्य वक्ता डॉ. मेजर सिंह ने कहा कि साहिबजादों का बलिदान भारतीय इतिहास में अद्वितीय है, जिन्होंने अत्याचार के आगे झुकने के बजाय धर्म और सत्य की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उनके आदर्श आज भी समाज को नैतिक मूल्यों, राष्ट्र प्रेम और आत्मबलिदान की प्रेरणा देते हैं। डॉ. मेजर सिंह ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत में कहा था कि जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ता है, तब-तब धर्म की स्थापना के लिए भगवान स्वयं अवतार लेते हैं। जब कश्मीरी पंडितों को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए यातनाएं दी गईं। तब मानवता और धर्म की रक्षा के लिए नौवें सिख गुरु गुरु तेग बहादुर जी ने औरंगजेब के अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाई और धर्म की रक्षा हेतु अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
यही नहीं, गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी अपने पिता के बलिदान से प्रेरणा लेकर धर्म और आत्मसम्मान की रक्षा का मार्ग अपनाया। गुरु गोबिंद सिंह जी के ज्येष्ठ पुत्र साहिबजादा अजीत सिंह जी और द्वितीय पुत्र साहिबजादा जुझार सिंह जी ने 1705 में चमकौर साहिब के युद्ध में मुगल सेना का सामना करते हुए वीरता की अनुपम मिसाल पेश की। साहिबजादा अजीत सिंह जी ने युवावस्था में ही युद्ध भूमि में उतरकर धर्म और न्याय की रक्षा करते हुए वीरगति प्राप्त की, जबकि मात्र 14 वर्ष की आयु में साहिबजादा जुझार सिंह जी ने भी अद्भुत साहस का परिचय देते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
मुख्यवक्ता ने इतिहास के पन्नों में दर्ज वह घटना भी साझा की, जब गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह जी (9 वर्ष) और साहिबजादा फतेह सिंह जी (6 वर्ष) को सरहिंद में बंदी बनाकर अमानवीय यातनाएं दी गईं और दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवा दिया गया। उस दौरान माता गुजरी जी ने भी असहनीय कष्ट सहे, लेकिन उनका धैर्य और आस्था अडिग रही। डॉ. मेजर सिंह ने बताया कि साहिबजादों को बार-बार धर्म परिवर्तन के लिए दबाव डाला गया, परंतु उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि न तो उनके दादा गुरु तेग बहादुर जी ने इस्लाम स्वीकार किया और न ही वे कभी करेंगे। छोटी उम्र में भी साहिबजादों ने असाधारण साहस, दृढ़ निष्ठा और धर्म के प्रति अटूट विश्वास का परिचय देते हुए बलिदान दिया।
इस अवसर पर कुलसचिव प्रो. ब्रिजेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि साहिबजादों का बलिदान केवल इतिहास की घटना नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास में धर्म, सत्य और मानव मूल्यों की रक्षा का अमर उदाहरण है, जो आज भी समाज को अन्याय के विरुद्ध खड़े होने की प्रेरणा देता है। कार्यक्रम में सभी ने साहिबजादों को नमन करते हुए उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।इस अवसर पर समाजसेवी रणजीत सिंह,डॉ. हरिप्रकाश शर्मा, चेतन सिंह, विश्वविद्यालय के डीन एकेडमिक अफेयर्स प्रो.रणधीर सिंह,प्रो. सीमा रानी, प्रो. रवि राज, प्रो. राजेंद्र चौधरी, प्रो. नीलम, प्रो. कृष्ण कुमार, उप कुलसचिव अतुल गोयल, डॉ. सत्येंद्र सांगवान व डॉ. प्रीति गहलोत सहित अन्य उपस्थित रहे।




