एक पत्रकार की ईश्वर से प्रार्थना, हे जगत पिता जग के मालिक मेरी विनती स्वीकार करो।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 94161-91877
कविता परस्तुति शिवकांत पाठक।
कुरुक्षेत्र :- मैं सेवक हूं तुम स्वामी हो यूं छुप छुप कर ना वार करो!!
दुनियां में केवल मानव ही बस नाम तुम्हारा लेता है!
तेरी दम पर वह दर्द सभी बस हंस हंस कर सह लेता है!!
कब किसने सोचा था बोलो मांझी पतवार डुबो देगा!*
फिर याद करेगा कौन तुझे जब तू अपनों को खो देगा!
अब सुनो कहर को बंद करो अपनी दुनियां से प्यार करो!
मैं सेवक हूं तुम स्वामी हो यूं छुप छुप कर ना वार करो!!
प्रभु बिना तुम्हारी मर्जी के एक पत्ता क्या हिल सकता है!
अपनी मर्जी से फिर बोलो यह मानव क्या कर सकता है!!
तुम स्वामी हो मैं सेवक हूं बस थोड़ा अंतिम काम करो!
आ जाओ धरती पर आकर कोरोना से संग्राम करो!!
तुम निराकार हो लेकिन प्रभु कुछ पल को अब साकार करो!
मैं सेवक हूं तुम स्वामी हो यूं छुप छुप कर ना वार करो!!
रचना = स. संपादक शिवाकांत पाठक ।