कविता
सालें गुज़री बहुत कुछ बदला
बदल गया मेरा संसार
आपके जाने के बाद
बदली नहीं कभी मुझें वो आपकी हर पल ज़रूरत
जिसने तड़पा दिया आपके जाने के बाद
वो बेपरवाह होके कहीं भी घूमना फिरना
आपके होने से मिला था
आपकी क्षत्र छाया में मेरी तकलीफें भी धूप सी खिली थी
हम तरसे बहुत उस क्षत्र छाया के लिए
जो कभी नहीं मिली
आपके जाने के बाद
हम अंदर ही अंदर टूटे बहुत
अकेले में बहुत रोये
आपके जाने के बाद
बहुत आगे बढ़ चले हम उम्र के इस पड़ाव पर
समझदार हुए दुनिया को जाना
वो बचकानी हरकतें न कर पाएं
आपके जाने के बाद
दिलासे ताने और सलाह सब कुछ मिला मगर
वो आपके जैसे “हाथ पकड़ कर ” आपका यूँ बोलना
चल “मेरी बेटी” “मैं हूँ ना”
डर मत
किसी ने नहीं बोला
आपके जाने के बाद
अपने तो बहुत हैं मगर
आपसा एहसास न दिलाता कोई
आपके जाने के बाद
आते तो हैं बहुत लोग घर पर
लेकिन आपके आने का इंतजार हम बेसब्री करते थे
वो इंतज़ार न करते किसी का
आपके जाने के बाद
खुशी कोई खुशी न लगती
दुःख में कोई सहारा न लगता
आपके जाने के बाद
काश ज़िंदगी पहले जैसी हो जाए
“पापा”
मैं आपको “बुलाऊँ”
और
आप आ जाओ
मेरे एकबार “पुकारने” के बाद
अनामिका सेंगर