प्रखंड रिपोर्टर- विक्रम कुमार
कसबा को नगर परिषद बनने के बाद भी आजतक यहां सामुदायिक शौचालय नहीं बन पाया है। जबकि इस क्षेत्र को दो वर्ष पूर्व ही ओडीएफ शहर घोषित किया जा चुका है,। हकीकत यह है कि नगर के वार्डों को छोड़ दें, शहर बाजार में भी सामुदायिक शौचालय बन पाया है। स्वच्छता और नागरिक सुविधा के नाम पर प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपये की राशि खर्च की जा रही है लेकिन नागरिकों को मिलने वाली सुविधा नहीं के बराबर है।
शहर के बाजार में जिले के सभी प्रखंडों के लोग अपने-अपने जरूरी कार्यों से आते हैं। आए दिन रोज बाजार में लोगों को शौचालय ढूंढते हुए देखा जाता है। आसपास के दुकानदारों से शौचालय की जगह के बारे में पूछा जाता है, लेकिन उन्हें क्या पता यहां नगर परिषद बनने के बाद भी शौचालय निर्माण नहीं कराया गया है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के चौक चौराहों पर शौचालय का निर्माण कराया गया है। कोरम और पैसे का दुरुपयोग कर नगर परिषद ने टीन के बने चलंत शौचालय की खरीदी थी। वह भी शहर के चौक-चौराहे से गायब है। कई लाख रुपये की लागत से 15 चलंत शौचालय को खरीदा गया है वह किसी सुनसान जगहों पर वैसे पड़ा हुआ है।, लिहाजा शहर में आने वाले लोगों को इधर-उधर ही खुले में शौच करना पड़ता है या फिर किसी के घर का सहारा लेना पड़ रहा है। खासकर महिलाओं को ज्यादा परेशानी हो रही है, लेकिन इस बात का तनिक भी असर नगर परिषद के अधिकारियों पर नहीं पड़ रहा है। सरकारी हाट जहां महिला बिक्रेताओं की संख्या बढ़ी हुई है, वहां भी सामुदायिक शौचालय नहीं बन पाया है,जबकि राजस्व की वसूली हो रही है। अब देखना यह है कि नगर परिषद की नींद कब तक टूटती है और शहरी लोगों को नागरिक सुविधा के रूप में समुदायिक शौचालय उपलब्ध कब होती है।
नगर परिषद सौंदर्यीकरण और नागरिक सुविधा के नाम पर प्रत्येक वर्ष करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है लेकिन सार्वजनिक शौचालय पर नही।