धैर्यवान व्यक्ति ही जीवन मे सुखी और तनावमुक्त रह सकता है : महन्त सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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धैर्यवान और दयावान व्यक्ति झोपड़ी में रह कर भी परम सुखी जीवन व्यतीत कर परमात्मा को पा सकता है : महत सर्वेश्वरी गिरि।
कुरुक्षेत्र पिहोवा :- राष्ट्रीय संत सुरक्षा परिषद संत प्रकोष्ठ की प्रदेशाध्यक्ष एवं श्री गोविन्दानंद आश्रम ठाकुरद्वारा पिहोवा की महन्त सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने आज सत्संग में श्रद्धालुओं को धैर्यवान ओर तनावमुक्त जीवन के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि सुख का अर्थ केवल कुछ पा लेना नहीं अपितु जो है उसमे संतोष कर लेना भी है। जीवन में सुख तब नहीं आता जब हम ज्यादा पा लेते हैं बल्कि तब भी आता है जब ज्यादा पाने का भाव हमारे भीतर से चला जाता है।
सोने के महल में भी आदमी दुखी हो सकता है यदि पाने की इच्छा समाप्त नहीं हुई हो और झोपड़ी में भी आदमी परम सुखी हो सकता है यदि ज्यादा पाने की लालसा मिट गई हो तो। असंतोषी को तो कितना भी मिल जाये वह हमेशा अतृप्त ही रहेगा।
सुख बाहर की नहीं, भीतर की संपदा है। यह संपदा धन से नहीं धैर्य से प्राप्त होती है। हमारा सुख इस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितने धनवान है अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि है कि हम कितने धैर्यवान हैं। सुख और प्रसन्नता इंसान की सोच पर निर्भर करती है।
महन्त सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने बताया कि जीवन मे इंसान को धैर्यवान बनना चाहिए तभी वह तनावमुक्त व रोगमुक्त हो पायेगा ओर प्रभु की भगत्ती में लीन रहेगा तो मोक्ष का अधिकारी भी बन पाएगा।