▪️पुरबिया माटी के ब्रहर्षि योगी देवरहा बाबा मूलत: नदौली गांव, बरहज देवरिया के सांडिल्य गोत्रीय तिवारी वंशी थे ।
▪️उनकी आयु 250 वर्षों से 900 वर्ष तक की अनुमानित है ।ऐसा उनके सर्वांग सिद्ध जप तप और योगबल से था ।वे परमसिद्ध हठयोगी और खेचड़ी विधा के सिद्धहस्त साधक थे ।
▪️उनकी मातृभाषा मल्लिका भोजपुरी थी ,जो आज भी गोरखपुर,देवरिया और बस्ती अँचल में बोली जाती है ।
▪️बाबा प्राय: एक काष्ठ मचान पर दिगंबर अवस्था में या मृगछाला ओढे बारहोमास रहते थे ।
▪️देवरिया में सरयु किनारे उनका मचान लगता था ।काशी में गंगा पार रेती में और प्रयागराज में संगम पर गंगा सेतु के पास उनका 12 फुटा मचान ही उनकी कुटिया और प्रवचन,आशीष का सर्वसुलभ स्थान रहता था । जहां वे दो चार साल में एक बार आते थे और वृदांवन में भी प्रवास करते थे ।
▪️बाबा अपनी मातृभाषा पुरबी भाषा में बोलते बतियाते और प्रवचन देते थे ,जिन्हें अब भोजपुरी नाम से जाना जाता है ।
▪️देवरहा बाबा के सर्वमान्य जगतगुरु होने का प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि अपने पिता की आज्ञा से भारत आये बरतानिया हुकूमत के वैश्विक सम्राट जार्ज पंचम स्वयं सन 1911 में देवरिया गये थे और देवरहा बाबा का दर्शन कर आशीष लिया था ।ये परम सत्य उस युग का है,जब साई बाबा भी शिरडी में थे,परंतु जार्ज पंचम पुरे भारत में सिर्फ संत शिरोमणि देवरहा बाबा से स्वयं जाकर मिले थे,पर साई से नहीं ।ये वैश्विक आध्यात्मिक जगत की अलभ्य घटना थी ।स्वयं महामना पं.मदन मोहन मालवीय जी उन्हें अपना गुरू मानते थे ।
▪️बाबा अन्न का सेवन नहीं करते थे और जितने सौम्य थे ,उतने ही उग्र भी ।उनके दर्शन हेतू मचान में आने वाले भक्त उनका गाली प्रसाद भी तृप्त भाव से ग्रहण करते थे ।
▪️सच कहुं तो मैने कुछ ही असली संतों का दर्शन किया हैं,जिनमें देवरहा बाबा सर्वोपरि हैं ।ये उन दिनों कि बात है मैं जब C.H.S. में पढता था ।
▪️बचपन में उनका कई बार काशी में दर्शन गंगा पार जाकर रेती मचान में कर उनसे आशीष,प्रसाद प्राप्त करने का सौभाग्य पा चुका हूँ।
एक बार भयंकर जाड़े में उनके मचान गया था,तो उन्होंने आशीष देते दुलारते पूछा “बचवा ! का खइबs ?”
▪️मैं बोला “आम”और बाबा ने हवा में हाथ हिलाया और वहां से एक बेमौसमी आम प्रगट कर मुझे दे दिया,जो कि अत्यन्त स्वादिष्ट था ।
इसी तरह एक बार उन्होंने मुझे बेमौसमी अन्नानास दिया था और हँसतें हुये कहा था कि ” बचवा !.तोरे बदे कामाख्या माई के ईंहा से लावे के पड़ल ।बहुत लीला आपन बाबा से करावत हउवs।”
▪️ये अलौकिक घटना तब बालबुद्धि समझ में नहीं आयी,पर आज जब मीमांसा करता हूँ,तो रोम रोम सिहर उठता है ।आज से चार दशक पुर्व भारत में बेमौसमी फल,फूल,सब्जियां स्वप्र ही हुआ करती थीं और शुन्य से उन्हें प्रकट करना तो अद्भुत अलौकिक ही माना जायेगा ।
▪️बाबा को मालूम था कि मैं क्या चाहता हूँ और क्या मागूंगा ।
शेष फिर …
पुण्यतिथि पर नमन ।