प्राचीन रामबाग में श्री रामकथा अमृत वर्षा का छाठवां दिन
संवाददाता:-विकास तिवारी
अम्बेडकर नगर।।आलापुर जहाँगीरगंज क्षेत्र के अंतर्गत प्राचीन रामबाग मंदिर के प्रांगण में विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी भव्य रूप से शुरू हुआ राम रामायण महायज्ञ एवं सप्त दिवसीय संगीतमयी श्रीरामकथा का कार्यक्रम ।मथुरा से पधारे श्रीराम कथा व्यास श्री अतुल कृष्ण भारद्वाज जी महाराज ने अपने मुखारविंद से सभी श्रोता गणों को कराया भगवान राम की कथा का रसपान।मथुरा से पधारे श्री व्यास जी महाराज ने कहा कि भगवान श्रीराम ने अपने कुल की मर्यादा को ध्यान में रखकर अपने पिता के वचन की रक्षा के लिए प्रसन्न होकर सारा राज-पाठ त्यागकर वन चले गये।इस प्रसंग को सुनते ही पण्डाल में उपस्थित लोग भाव विभोर हो गये।
उक्त बातें सोमवार को वृन्दावन से पधारे व्यास अतुल कृष्ण भारद्वाज ने कहीं।कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि अच्छे कार्यों को टालने की जगह शीघ्र करना ही श्रेयष्कर होता है।सभी को सदैव प्रसन्न रखने की प्रेरणा भगवान श्रीराम से लेनी चाहिए।भगवान जहाँ भी रहते हैं प्रसन्न रहते हैं,दुख उनसे कोसों दूर रहता हैं कथा को रसपान कराते हुए कहा कि कौशिल्या को किसी ने दोषी नहीं बताया बल्कि कहा कि यदि माँ कैकेयी बन जाने को कहा।लेकिन कैकेयी कहती हैं कि सुख और दुख तो अपने ही कारणों से होते हैं।भाई हो तो लक्ष्मण जैसा जब श्रीराम वनवास जा रहे थे तब लक्ष्मण ने अपनी माता से कहा कि मैं भी वनवास जाना चाहता हूँ।तो माँ ने कहा कि मैं तो जन्म ही दी हूँ पर तुम्हारी माता कौशिल्या से जाकर आदेश ले लो वहीं तुम्हें आदेशित करेंगी।वहाँ भाई प्रेम देखकर आदेश मिल गया।जब भगवान श्रीराम (लखन)और सीता सहित वन गमन के लिए निकले तो सभी अयोध्यावासी अपने-अपने घरों से भगवान राम के पीछे निकल पड़े।व्यास जी ने यह प्रसंग सुनाया तो पंडाल में उपस्थित सभी श्रोताओं के आँख में से आंसू छलक पड़े।रामचरित मानस में माँ कैकेयी बहुत ही महान पात्र हैं यदि माँ कैकेयी नहीं होती तो रामकथा बालकाण्ड में ही समाप्त हो जाती।कैकेयी माँ ने ममता में साहस भरकर पुत्र के प्रति कठोर स्नेह का दर्शन कराया हैं।माँ कैकेयी अगर राम को वनवास नहीं कराती तो अखण्ड भारत में रामराज्य की स्थापना नहीं हो पाती।ममता में तनिक कठोरता का होना अनिवार्य हैं।मर्यादा पुरूषोत्तम बनाने में माँ कैकेयी ने अपना अनुराग,भाव और सुहाग सब कुछ समर्पित कर दिया।माता सीता पति धर्म के लिए अयोध्या का सुख छोड़ दिया भैया लखन भाई की सेवा धर्म को निभाने के लिए सम्पूर्ण वैभव सुख छोड़कर श्रीराम एवं माँ सीता की सेवा में चौदह वर्ष अपना जीवन वन में बिताया।राम वनवास के समय सभी ने अपने-अपने धर्म पर चलकर आज के समाज को सभी ने मार्ग दर्शन दिया हैं।इस दौरान पण्डाल में उपस्थित हजारों श्रद्धालु उपस्थित रहे।