संवाददाता:-विकास तिवारी
शबरी के भक्ति से प्रभावित होकर श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाकर सामाजिक समरसता का संदेश दिया।स्वर्ण मृग(सोने का हिरण) की घटना का बड़े की रोचक ढंग से वर्णन करते हुए कहा कि जब भक्त भगवान से विमुख होकर केवल भौतिक साधनों की ओर आकर्षित होता हैं।
तब उसे भगवान की प्राप्ति के लिए भटकना ही पड़ता है।उक्त बातें आलापुर जहाँगीरगंज क्षेत्र के अंतर्गत प्राचीन रामबाग मंदिर के प्रांगण में श्रीराम कथा की अमृत वर्षा कराते हुये प्रख्यात श्रीराम कथा वाचक व्यास अतुल कृष्ण भारद्वाज महाराज जी ने कहीं।जटायु के प्रसंग की व्याख्या करते हुए कहा कि जो दूसरों की सेवा में लगा रहता हैं।उसकी चिन्ता स्वयं भगवान करते हैं।जैसे जटायु ने सीता माँ की रक्षा के लिए अपने प्राण को न्यौछावर किया तो प्रभु श्रीराम ने एक अधम पक्षी गिद्ध जाति को उठाकर अपने गोदी में बैठाकर सीने से लगाया,जिसका परिणाम भी तुलसीदास जटायु को मानस में परम् बड़ भागी कहा और जटायु सीधे भगवान को विमान से सीधे स्वर्ग में स्थान को प्राप्त किया।जैसे शबरी भगवान की भक्त थी फिर भी श्रीराम यह जानते हुए कि वह भीलनी जाति की है इसके बावजूद उसके जूठे बेरो को खाकर सामाजिक समरसता का संदेश दिया।भगवान की साधना में जाति पाति का भेदभाव नहीं होता हैं।भगवान शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश दिये।महाराज जी ने आगे कहा कि सुग्रीव से मिलना व बालि के प्रसंग के माध्यम से समाज को संदेश दिया कि अधर्म कितना भी मजबूत हो अन्त में आगे चलकर उसे पराजित होना पड़ता हैं और अधर्म पर धर्म की विजय सदैव होती है।सोने की तो दूर की बात लोहे का भी पात्र नहीं लेकिन भगवान श्रीराम ने एकाएक केवट को अनुमति नहीं दी।को कई जतन के बाद केवट को पैर धोने की अनुमति मिली।
तब केवट अपने घर जाकर पत्नी को सारी घटना के बारे में बताया तो पत्नी भावुक हो गई।पत्नी ने कहा कि आज प्रभु के चरण धोने का सौभाग्य मिला है।लेकिन घर में सोने के पात्र तो दूर की बात है लोहे के पात्र भी नहीं हैं।तब केवट ने कहा कि घर में कठौता जो लकड़ी का पात्र हैं उसमें प्रभु के चरण धोने की बात कहीं।