प्रभारी संपादक उत्तराखंड
साग़र मलिक
हाइलाइट्स:
देहरादून में 10 एकड़ पर बना है सीएम का बंगला
उत्तराखंड में सीएम बनने के बाद भी जो यहां शिफ्ट हुआ वह पूरा नहीं कर पाया कार्यकाल
राजनीतिक इस बंगले को मानते हैं मनहूस, इसलिए नहीं होना चाहते शिफ्ट
हालांकि तीरथ सिंह रावत भी यहां शिफ्ट नहीं हुए थे, लेकिन इसके बावजूद कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए
देहरादून
उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य के पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत का एक फैसला पलट दिया है। यह फैसला है देहरादून के न्यू कैंट रोड स्थित मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास में एक कोविड केयर सेंटर बनाने का। धामी आदेश खारिज करने के साथ ही वह सरकारी आवास में शिफ्ट हो गए।
पुष्कर धामी ने गुरुवार को अपने कैबिनेट सहयोगियों के साथ मुख्यमंत्री के कैंप कार्यालय में पूजा की, जो आधिकारिक आवास का एक हिस्सा है। शुक्रवार को उन्होंने सरकारी आवास के मुख्य हॉल में जनता मिलन कार्यक्रम में भी लोगों से मुलाकात की।
मनहूस’ माना जाता है आवास
सीएम के इस सरकारी आवास को लेकर सियासी गलियारे में कई तरह की चर्चाएं हैं। इस आवास को ‘मनहूस’ माना जाता है। धारणा यह है कि जो मुख्यमंत्री सदन में रहे हैं उनमें से कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। दिलचस्प बात यह है कि पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत ने घर से दूर रहना पसंद किया, लेकिन फिर भी उन्हें सीएम पद से जल्दी बाहर निकलना पड़ा।
निशंक और विजय बहुगुणा हटाए गए
इस आवास के मनहूस होने के लेकर चर्चाएं तब सामने आईं, जब पूर्व सीएम निशंक और बाद में यहां रहे विजय बहुगुणा को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटा दिया गया था। माना जा रहा है कि पूर्व सीएम हरीश रावत इसी वजह से सरकारी आवास में शिफ्ट नहीं हुए और इसके बजाय स्टेट गेस्ट हाउस में रहना पसंद किया। हालांकि, 2017 में आवास के मनहूस होने की बात को धता बताते हुए, त्रिवेंद्र सिंह रावत शहर के बीचों-बीच 10 एकड़ में फैले बंगले में शिफ्ट हो गए थे।
10 एकड़ पर बना है बंगला
‘पहाड़ी’ शैली में डिज़ाइन किया गया, 60 कमरों वाला विशाल बंगला 2010 में बनाया गया था। इसमें एक बैडमिंटन कोर्ट, स्विमिंग पूल, कई लॉन और सीएम और उनके स्टाफ सदस्यों के लिए अलग-अलग कार्यालय हैं।
‘मनहूस’ की धारणा पर प्रहार
हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि मनहूस जैसी धारणाओं पर ऐतबार नहीं किया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी नोएडा आकर यही संदेश देने की कोशिश की थी। नोएडा को लेकर सियासी हलकों में यह धारणा थी कि नोएडा में आने वाला यूपी के किसी सीएम को दूसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिली।
राजनाथ सिंह जब यूपी के सीएम बने तो अपने कार्यकाल में वह भी नोएडा नहीं गए। 2011 में मेट्रो सर्विस के उद्घाटन के लिए मायावती नोएडा आईं थीं और 2012 में उन्हें समाजवादी पार्टी के हाथों सत्ता से बेदखल होना पड़ा। इसके बाद सीएम रहते हुए अखिलेश यादव ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा जाने का कभी नाम भी नहीं लिया। हालांकि, इसी धारणा को तोड़ने के लिए योगी आदित्यनाथ नोएडा आए थे।