सावन के महीने में आसमान से गिरता पानी
पहाड़ों पर कल कल धरती पर छन छन गिरता पानी
काले मेघों की गड़गड़ाहट से गूंजता आसमान
सावन महीने में बरसा पानी
कभी तेज कभी फ्वार बनकर गिरता पानी
सावन के महीने में बरसता पानी
नदी नदियों तालाबों में कल कल ध्वनि से बहता पानी
आसमान में गर्जना कर बरसता पानी सावन के महीने में बरसा पानी
मानो आसमान से अमृत की धारा बहती
सबको शीतल सरल जल देती
पेड़ पौधे पशु पक्षी सभी खुशी हो जाते हैं
बच्चों के लिए बरसता पानी खुशी ले आता है
बरसते पानी मे नहाने को जी चाहता है
नदियों का बढ़ता स्तर जल ही जल प्रतीत होता है
आसमान से गिरता पानी बरसा बूंदें बन जाती हैं
सावन महीने में बरसता पानी झूले की याद दिलाती है
झूला झूलने को आतुर होते झूले बगैर नहीं रह पाते हैं
सावन के महीने में बरसता पानी
जगह-जगह मानो जलाशय दिखाई देता है
बूंद बूंद गिरता पानी जल ही जल हो जाता है
धरा होती जलमग्न पृथ्वी जल रूप में जाती है
आसमान से बरसता पानी सावन की याद दिलाती है
हर मौसम याद दिलाता सावन भी याद दिलाता है
कहीं गरजते कहीं बरसते बरसात की लड़ी लगाते हैं
धरा भूमि धरातल पर वर्षा का पानी
ऊपर से गिरती वर्षा की बूंदें शुद्ध स्वच्छ रूप में आती हैं
कविता लेखक दिव्या बाजपेई पट्टी कन्नौज