पूर्णिया संवाददाता
जिले में भू विवाद का मामला लगातार गहराता जा रहा है। भू-माफियाओं के आंतक से आम आदमी उतना परेशान नहीं हैं जितना कि अंचल कार्यालय के बाबूओं और कर्मचारियों से परेशान हाल है। भू विवाद से सम्बंधित जितना मामला पूर्णिया पूर्व प्रखंड अंचल कार्यालय में है शायद किसी और अंचल में नहीं है। ताज़ा विवादित मामला भी पूर्णिया पूर्व अंचल कार्यालय से जुड़ा हुआ है। मौजा मरंगा खाता 1554 खेसरा 1119 रकबा 3.45 एकड़ की भूमी छत्तीस वर्षों से विवादित है। अंचलाधिकारी, कर्मचारियों और कार्यालय के बाबूओं के कारण आज तक यह भू विवाद सुलझने के बजाते उलझता जा रहा है।भूमि का खतियान होने के बावजूद मोटेशन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सका,वजह किया है इस से जानना बेहद जरूरी है।साक्ष्यों के अभाव में भी सरकार का दावा है मरंगा मौजा खाता 1554 के खेसरा 1119 की भूमि विदेशी नागरिक की थी जिसे सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया है। दूसरी तरफ खतियानधारी गणेश लाल दास के वंसज तमाम पोख्ता सबूतों के साथ दावा किया है मरंगा मौजा के खाता 1554 की भूमि उनके पूर्वजों का है। उन्होंने बताया यह भूमि अंग्रेजों के जमाने में सम्भवतः सन 1889 में मरंगा मौजा की यह भूमि सी जे सीलिंग फोर्ड ने ए जे फारविस को वसियत किया था।उसके बाद सन 1890 में एक जे फारविश को मालिकाना हक मिल गया। मालिकाना हक के उपरांत ए जे फारविस ने अपने रैयतधारी के साथ सन 1920 में खाता 1554 खेसरा 1119 रकबा 3.45 एकड़ की भूमी राय बहादुर निशीकांत सेन को पूर्णिया निबंधन कार्यालय में जाकर केबाला कर दिया।इसी केबाला में गणेश लाल दास का नाम भी अंकित है, सर्वे के बाद गणेश लाल दास के वंसज श्याम लाल दास का नाम खतियान में दर्ज हो गया।उसके बाद कानूनी दांव पेंच,आला अधिकारियों, अंचलाधिकारी,अंचल कार्यालय और कार्यालय के बाबूओं के पत्राचार के मकड़जाल में भूस्वामी श्याम लाल दास का अस्तित्व दफन होने लगा, सरकार लगातार दवा कर रही है यह भूमि विदेशी नागरिक की हैं जिससे सरकार ने अपने नियंत्रण में ले रखा है,सूचना के अधिकार के तहत अपील करता अनिल कुमार कहते हैं सरकार ने किस धारा और कानून के तहत अपने नियंत्रण में रखा किसी को विस्तृत जानकारी नहीं दी जा रही। सिर्फ एक गजट पेश किया जा रहा है जिसमें मरंगा मौजा के प्लाट नम्बर 576, 577,592और 1199 रकबा 20.67 एकड़ की भूमि आयरिन अमिलिया लायड तथा इनके पुत्र नारमन लायड से सी जी सिलिंग फोर्ड पिता रोम मिडली फोर्ड को है,और असाधारण अंक संख्या 07 में अंकित है लेकिन दोनों में आपसी सम्बन्ध किया है इन्हीं प्रश्नों को जब अपीलकर्ता ने सूचना के अधिकार के तहत 20.10.18 को पूछा तो वरिय उप समाहर्ता ने 19.11.18 पत्रांक 2396 में जवाब देते हुए लिखा है कि मांगीं गई सूचना के सम्बन्ध में संधारित पंजी/अभिलेख की काफी खोजबीन की गई। लेकिन इससे सम्बंधित कोई भी पंजी/अभिलेख कार्यालय में वर्तमान में नहीं मिला। अपीलकर्ता अनिल कुमार। आगे कहते हैं जब श्याम लाल दास के खतियान की जानकारी मांगी जाती है तो कोई सार्थक जवाब नहीं दिया जाता। और मुझे एक नहीं दो दो बार मुकदमा में फंसाया गया। लेकिन जब मामला राज्य सूचना आयोग पटना के संज्ञान में आया तो राज्य सूचना आयोग के उप सचिव ने पूर्णिया अंचलाधिकारी से खाता 1554 खेसरा 1119 रकबा 3.45 एकड़ की भूमि का ब्यौरा और खतियानधारी श्याम लाल दास के नाम की विस्तार से जानकारी मांगी तो पूर्णिया अंचलाधिकारी ने पत्रांक 2211 दिनांक 29/11/18के अपने पत्र से उप सचिव को जानकारी देते हुए कहा कि सम्बंधित खतियान पंजी को अपर समाहर्ता पूर्णिया ने सीलबंद कर दिया गया है, लेकिन सीलबन्द के सम्बन्ध में अपर समाहर्ता के कार्यालय से कोई आदेश कार्यालय को प्राप्त नहीं है। खतियान किनके नाम पर है स्पष्ट करने में कठिनाई हो रही है।इस कार्यालय के पत्रांक 1954 दिनांक 1/11/18 के माध्यम से जो सूचना महोदय के अवलोकनार्थ भेजी गई है,उक्त सूचना हल्का कर्मचारी के पंजी 2 के माध्यम से आवेदक को उपलब्ध करायी गरी थी जो संधारित उपस्थापित खतियान से संबंधित था।
अपीलकर्ता अनिल कुमार के साथ अंचलाधिकारी, कर्मचारी और आला-अधिकारियों के पत्रचार का यह खेल लगातार खेला जा रहा है किस सफेदपोश भूमाफिया के इसारे पर यह पत्रचार का खेल अंचल कार्यालय से खेला जा रहा है कहां नहीं जा सकता। लेकिन राज्य सूचना आयोग पटना के राज्य सूचना आयुक्त ने वाद संख्या A 8741/19 पर सख़्त रवैया अपनाया है और साफ शब्दों में लिखा है कि जिले की जमाबंदी संख्या से सम्बंधित अभिलेख/प्रतिवेदन उपलब्ध ही नहीं कराया गया है इस प्रकार कहीं न कहीं कोई अधिकारी/कर्मचारी गलत बोल रहा है इस बिंदु को अपर मुख्य सचिव राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के संज्ञान में लाया जाए ताकि वे विलंब के कारणों अथवा अभिलेख के अनुपलब्ध होने की स्थिति की समीक्षा कर दोषी अधिकारी/कर्मचारी के विरुद्ध आवश्यक सुधारात्मक कार्रवाई करने पर विचार कर सके।
किया इतना पत्रचार और राज्य सूचना आयोग के सख़्त रवैया के बाद श्याम लाल दास को इंसाफ मिल पायेगा, किया पत्राचारों के मकड़जाल से छत्तीस वर्षों का यह विवाद समाप्त हो पायेगा,यह एक बड़ा प्रश्न है जिसका जवाब मिलना अभी बाकी है।इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए ताकि आमजन सच्चाई जान सके।