अररिया संवाददाता
कई भाषाओं के विद्वान व इस्लामिक जानकर मौलाना मुहम्मद मुसव्विर आलम नदवी चतुर्वेदी सचिव आल इण्डिया प्यामे इंसानियत फोरम अररिया ने प्रेस वार्ता करते हुए शोक का पर्व मुहर्रम के बारे में बताया कि कैलेण्डर का नया साल मुहर्रम के महीने से शुरू होता है। यही वह महीना है, जिसके दसवें दिन को यौमे आशूरा कहा जाता है। इस्लामी इतिहास में यौमे आशूरा का एक विशेष महत्व है। इस दिन बहुत सारी घटनाएं घटीं, जिनमें पैग़ंबर मुहम्म्द सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के नवासे हज़रत हुसैन रजि़यल्लाहु अन्हु के शहीद होने की घटना भी शामिल है। एक सत्य और असत्य की लडा़ई थी, जिसमें हज़रत हुसैन रजि़यल्लाहु अन्हु 22 हजा़र दुशमनों का मुकाबिला करते हुए अपने 72 साथियों के साथ कर्बला के मैदान में शहीद हो जाते हैं। इसी शोक में कुछ लोग इस दिन छाती पीटते हैं,मातम मनाते हैं,और ताजि़या, जो कि (बनावटी कब्र है) निकाल कर यह दर्शाने का प्रयास करते हैं कि यह हज़रत हुसैन रजि़यल्लाहु अन्हु और उनके साथियों की कब्र है। ऐ हुसैन, अगर हम होते तो तेरी लाशों को क्षत-विक्षत होने से बचा लेते और पूरे सम्मान के साथ तूझे भी और तेरे साथियों को भी दफन करते। यह और इस प्रकार की कुछ मनगढ़त चीजे़ हैं, जो धर्म इस्लाम के नाम पर 10 मुहर्रम को की जाती हैं, जबकि धर्म इस्लाम का इससे कोई संबंध नहीं है। यदि यह सब चीजै़ शोक व्क्त करने के लिये की जाती हैं तो धर्म इस्लाम में शोक अधिक से अधिक तीन दिन है,तीन दिन के बाद शोक नहीं कर सकते। और ताजि़या बनाकर उसकी पूजा करना तो शिर्क है ही, जिसकी इस्लाम कभी अनुमति नहीं दे सकता। जुलूस निकालकर पूरे शासन और प्रशासन को डिस्टर्ब करना, ढोल बजाना,नाच-गान करना,खिचडा़-पुलाव का खास एहतमाम करना आदि ऐसी चीजे़ हैं जिनका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है। मुहर्रम के दिन रोजा़ रखें, 10 मुहर्रम को रोजा़ रखना सुन्नत है। जबतक रमजा़न का रोजा मुसलमानों पर फर्ज़ नहीं हुआ था, यौमे आशूरा यानी 10 मुहर्रम का रोजा़ फर्ज था। जब रमज़ान का रोजा फर्ज़ हुआ तो यौमे आशूरा का रोजा़ नफ्ल (अतिरिक्त) के दर्जे में हो गया, जिसका दिल चाहे रखे और जिसका दिल चाहे न रखे।
हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फर्माया : जिसने यौमे आशूरा का रोजा रखा, आशा करता हूं कि अल्लाह उसके गुजरे हुए एक वर्ष के गुनाहों को माफ कर देगा। दूसरा काम 10 मुहर्रम के दिन यह करें कि अपने बाल-बच्चों और घर-परिवार के खाने-पीने पर यथा संभव खर्च करें। हदीस में है कि जो शख्स आशुरा के दिन अपने घर-परिवार वालों पर खाने पीने में विस्तार करेगा, अल्लाह पूरे साल उसकी रोजी-रोटी में विस्तार प्रदान करेगा। तीसरा काम अपनी हैसियत के मुताबिक गरीबों और मोहताजों की मदद करें। जिन बहनों और रिशतेदारों को आप भूल चुके हैं, उनका हाल-चाल मालूम करें,यदि उनको आपकी जरूरत है, तो आप उनके लिये सहारा बनें, यही यौमे आशूरा 10 मुहर्रम का संदेश है।
अररिया फोटो नंबर 1 चतुर्वेदी साहब