मनरेगा का मुर्गीपालन शेड बनी समूह की महिलाओं की कर्मभूमि

जांजगीर-चाँपा, 31 अगस्त, 2021/    कोई कहानी ऐसे ही नहीं बनती बल्कि उसके पीछे दृढ़ इच्छाशक्ति अथक मेहनत, परिश्रम और एक बेहतर सोंच होती है। ऐसी ही सोंच को पहचानने का काम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के बेहतर तालमेल के साथ किया गया। जांजगीर-चाँपा जिले के बलौदा विकासखण्ड के गांव औराईकला की स्व सहायता समूह की महिलाओं के लिए महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से बनाया गया पोल्ट्री शेड फलीभूत साबित हुआ और उनके लिए कर्मभूमि बन गया। कर्मभूमि ऐसा बना कि पोल्ट्री शेड निर्माण के बाद से ही महिलाओं ने भविष्य की उम्मीदों का ताना-बाना बुनना शुरू कर दिया। आज समूह की महिलाओं ने गांव में रहते हुए अपने आपको आत्मनिर्भर बनाया और मुर्गीपालन क्षेत्र में हाथ आजमाते हुए इन महिलाओं ने सफलता की सीढ़ियां चढ़ना शुरू किया। आर्थिक आत्मनिर्भर बनने से उनके परिवार की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ हुई और वे गांव के लिए एक मिसाल बनकर उभरने लगीं।
     ग्राम पंचायत औराईकला के मोहारपारा की जय सती माँ स्व सहायता समूह की महिलाओं ने अपनी जिंदादिली लगन, मेहनत और कुछ अलग कर दिखाने के जज्बे के चलते अपने रोजमर्रा के काम के.साथ-साथ  समूह का नियमित रूप से संचालन करते हुए  अपने सभी दस्तावेजों का संधारण किया। नियमित बैठक भी आयोजित की गई। शुरूआती दिनों में छोटी-छोटी बचत करके जो पैसा जमा किया, उस राशि को कम ब्याज पर जरूरतमंदों को देकर उनकी मदद की। इससे वे गाँव में लोकप्रिय होने लगीं और धीरे-धीरे आर्थिक रुप से मजबूत होने लगीं।  उनके पास नियमित बचत के जरिये कुछ रकम जमा हुई, तो उन्होंने मुर्गीपालन व्यवसाय करने का निर्णय लिया। इसके  लिए उन्हें एक बहुत बड़े शेड की जरूरत थी। लेकिन  शेड निर्माण के लिए पैसे कम थे। समूह की महिलाओं ने अपनी इस जरूरत को ग्राम पंचायत के माध्यम से ग्राम सभा के समक्ष रखी। इन महिलाओं की दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मबल को देखते हुए ग्राम सभा के अनुमोदन के आधार पर व 5 लाख रुपये की लागत से महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत समूह के लिए मुर्गीपालन शेड निर्माण का कार्य मंजूर किया गया।  गांव के गोठान परिसर में समूह के लिए एक मुर्गीशेड का निर्माण किया गया।महात्मा गांधी नरेगा हुए शेड निर्माण से 65 मनरेगा श्रमिकों को गाँव में ही 277 मानव दिवस का रोजगार भी मिला।समूह की अध्यक्ष श्रीमती रूप बाई बिंझवार बताती हैं कि शेड के बाद पशुपालन विभाग द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया।  छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (बिहान) योजना से अनुदान राशि के रुप में मिले रिवाल्विंग फंड के 15 हजार रूपए एवं सी.आई.एफ. (सामुदायिक निवेश निधि) के 60 हजार रुपए से शेड में मुर्गीपालन का काम शुरू किया। उन्होंने  काकरेल प्रजाति के 600 चूजे खरीदे, जिन्हें नियमित आहार, पानी, दवा एवं अन्य सुविधाएं देकर छह सप्ताह में बड़ा किया।  मौसम खराब होने के कारण कई चूजों की मौत हो गई, जिससे समूह को काफी नुकसान हुआ। इन सबके बावजूद समूह की महिलाओं ने हार नहीं मानी और अपने आत्मबल और समूह की दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर फिर से मुर्गीपालन के काम में जुट गई। इस बार समूह ने 600 ब्रायलर चूजे खरीदे और उनकी देखभाल करना शुरू किया। धीरे-धीरे ये चूजे बड़े हो गए। आखिरकार इन महिलाओं की मेहनत रंग लाई और चाँपा के एक बड़े व्यवसायी ने मुर्गों को बेहतर दाम देकर खरीद लिया। इस बार समूह को मुर्गीपालन से लाभ हुआ और सभी खर्चों को काटकर उन्हें लगभग 30 हजार रूपए की बचत हुई।  समूह की सचिव श्रीमती मालती चौहान बताया कि लाभ होने से समूह की सभी सदस्य काफी खुश थीं। सभी का उत्साह भी दो-गुना हो चुका था। समूह ने फिर एक कदम आगे बढ़ाते हुए लगभग 600 चूजे और खरीद लिए, जो बड़े हुए तो उन्हें बेचने से समूह को लगभग 50 हजार रूपए का मुनाफा हुआ। इसने समूह में एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया था, सो अब उनके कदम कहाँ रूकने वाले थे। उन्होंने फिर 600 ब्रायलर चूजे खरीदे, जिन्हें फिलहाल दाना-पानी देकर बड़ा किया जा रहा है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इनको बेचने से समूह को लाभ होगा।
पंचायत से मिली मदद-
ग्राम के सरपंच श्री दशरथ यादव बताते हैं कि मुर्गीपालन सावधानी से किया जाने वाला कार्य है।  नियमित रूप से देखभाल करनी पड़ती है। चूजों और मुर्गियों की देखभाल के लिए  पशुपालन विभाग की भी मदद लेते हैं। गांव की अन्य महिलाओं को मुर्गीपालन व्यवसाय के लिए लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। आसपास के मुर्गी व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों से भी संपर्क करके उन्हें अच्छे दाम दिलवाने का प्रयास किया जा रहा है।

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