जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा की पूर्ति में आज के ही दिन 1 सितम्बर 1939 को पौलेण्ड पर हमला करके पूरी दुनिया को द्वितीय विश्व युद्ध की ऑग में झोंक दिया था । जर्मनी के पोलैंड पर हमले के साथ ही फ्रांस ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और इंग्लैंड सहित राष्ट्रमंडल के देशों ने इसका अनुमोदन कर दिया। यह युद्ध दो वैश्विक गुटों मित्र राष्ट्रों और धुरी राष्ट्रों के मध्य हुआ जिसमें कुल 70 देशों ने प्रत्यक्ष रूप से भाग लिया। वैश्विक समाज ने सम्पूर्ण वैश्विक इतिहास में इससे भयावह और तबाही वाला युद्ध कभी नहीं देखा था। यूरोपीय महाशक्तियों सहित जापान ने अपनी समस्त आर्थिक,वैज्ञानिक, तकनीकी और औद्योगिक ताकत झोंक दी। विविध सामरिक मोर्चे पर लडे गये इतिहास के सबसे घातक और विनाशक युद्ध के प्रभाव से स्विट्जरलैंड और कुछ स्कैंडिनेवियाई देशों को छोड़कर विश्व का कोई भू-भाग अछूता नहीं रहा। 1939 से 1945 तक लगभग छ वर्ष तक चले इस युद्ध में अबतक के सबसे खतरनाक हथियारों का प्रयोग किया गया और इस युद्ध ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी महाद्वीपों को आगोश में ले लिया। विज्ञान और तकनीकी के ज्ञान के फलस्वरूप निर्मित इस युद्ध में ऐसे खतरनाक हथियारों का प्रयोग हुआ जिसको मानव समाज ने इसके पूर्व कभी नहीं देखा था। विज्ञान और तकनीकी के ज्ञान तथा चमत्कार के दुरुपयोग का बेहद घिनौना ,वीभत्स और विध्वंसक स्वरुप को पुरे विश्व ने अपनी ऑखों से देखा । हर सभ्य और शान्ति , सहिष्णुता और मानवतावादी मूल्यों में विश्वास करने वाले इंसान की रूह तक कंपा देने वाले इस युद्ध में लगभग सात करोड़ लोगो की जान गई और पुनर्जागरण के बाद अपनी प्रतिभा और परिश्रम से आम जनता ने जो बेशुमार दौलत कमाई थी वह इस महायुद्ध की आग में जल कर खाक हो गई। चूंकि इस विश्वयुद्ध में सैनिकों से ज्यादा आम नागरिक हताहत हुए इसलिए इस युद्ध को खूनी युद्ध भी कहा जाता हैं। 1945 मे पर्ल हार्बर की घटना की प्रतिक्रिया में जापान के दो प्रमुख शहरों नागाशकी और हिरोशिमा पर सयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराए जाने के बाद धुरी राष्ट्रों ने लगभग आत्मसमर्पण कर दिया। इसके कुछ दिन बाद 2 सितम्बर 1945 को यह युद्ध समाप्त हो गया।
आज भी विश्व के राजनीतिक और कूटनीतिक विश्लेषक इस युद्ध के कारणों और प्रभावों पर चिंतन मनन करते रहते हैं। प्रथम विश्व युद्ध की विभीषिका से गहरे रूप से प्रभावित शान्ति पसंद वैश्विक नेताओं विशेषकर तत्कालीन अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के सद्प्रयासो से बने राष्ट्र संघ को भी युद्ध रोकने में सफलता नहीं मिली। द्वितीय विश्वयुद्ध के आर्थिक ,राजनीतिक और सामाजिक सामरिक कारणों पर विचार करना आवश्यक है ताकि भविष्य में मानवता को तृतीय विश्व युद्ध न देखना पड़े।
विश्व के लगभग अधिकांश राजनीतिक विश्लेषक दुनिया के प्राकृतिक संसाधनों और बाजार पर नियंत्रण करने की साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा को द्वितीय विश्व युद्ध का प्रमुख आर्थिक कारण मानते हैं। पुनर्जागरण के उपरांत यूरोपीय महाद्वीप में ज्ञान विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र अनगिनत चमत्कार होने लगें। इन चमत्कारों के फलस्वरूप यूरोपीय महाद्वीप में औद्योगिक विकास द्रुत गति से होने लगा और इस औद्योगिक विकास के कारण यूरोप में इंग्लैंड, फ्रांस , जर्मनी, इटली और आस्ट्रिया-हंगरी जैसी महाशक्तियों का उदय हुआ। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से इन महाशक्तियों में विश्व के प्राकृतिक संसाधनों और बाजार के लिए हिंसक प्रतिस्पर्धा बढने लगीं। अंततः इस साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा की परिणति बीसवीं शताब्दी में हुए दो विश्वयुद्धो के रूप में हूई। प्रकारांतर से साम्राज्यवादी शक्तियों के मध्य निरंतर बढती आर्थिक, व्यापारिक और सामरिक प्रतिस्पर्धा के कारण यह विश्व समुदाय को यह युद्ध झेलना पडा।
द्वितीय विश्वयुद्ध के राजनीतिक कारणों में जर्मनी इटली इत्यादि देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का ध्वस्त होना और उसके स्थान उग्र और अंध राष्ट्रीयता के बलबूते एडोल्फ हिटलर और बेनिटो मुसोलिनी जैसे तानाशाहो का उदय होना भी माना जाता हैं । यह सर्वविदित तथ्य है कि- प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत 1919 में होने वाली वर्साय की संधि में जर्मनी के साथ अपमानजनक व्यवहार हुआ था। इस अपमानजनक व्यवहार से जर्मन लोगों में तीव्र आक्रोश था। इस आक्रोश का भावनात्मक विदोहन कर एडोल्फ हिटलर ने जर्मन लोगों में अंधराष्ट्रवाद की चेतना भर दी। हिटलर के नक्शेकदम पर इटली के तानाशाह मुसोलिनी ने रोमन साम्राज्य के नाम पर इटली के लोगों में अंधराष्ट्रवाद की चेतना भरने का कार्य किया। निश्चित रूप से यूरोपीय महाद्वीप में निरंतर बढती उग्र और अंधराष्ट्रीयता भी द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रमुख कारणों में मानी जाती है। 1917 की साम्यवादी क्रांति के बाद जोसेफ स्टालिन के नेतृत्व सोवियत रूस यूरोप में एक शक्तिशाली देश के रूप में उभरने लगा। उभरते हुए सोवियत रूस को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटेन ने हिटलर के प्रति तुस्टीकरण की नीति अपनाया। कुछ इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक ब्रिटेन द्वारा अपनाई जाने वाली तुस्टीकरण की नीति को द्वितीय विश्व युद्ध का कारण मानते हैं। इसके अतिरिक्त यूरोपीय महाद्वीप में शक्ति संतुलन अपने पक्ष में बनाए रखने की गरज से होने सामरिक संधिया और सैनिक गुटबंदिया भी द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण रहीं हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध ने पूरी दुनिया को व्यापक रूप से प्रभावित किया और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन आया। वैश्विक रंगमंच पर ब्रिटिश साम्राज्य और फ्रांस जैसी परम्परागत महाशक्तियों का महाशक्ति का तमगा छीन गया। इनको प्रतिस्थापित करते हुए सयुंक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस वैश्विक राजनीति महाशक्ति के रूप में स्पष्ट रूप से उभर कर आए।
द्वितीय विश्वयुद्ध के कारणों पर विचार आज भी प्रासंगिक है क्योंकि आज भी प्राकृतिक संसाधनों और बाजार के लिए शक्तिशाली देशों के मध्य प्रतिस्पर्धा जारी है। आज अफगान संकट को ध्यान में रखते हुए द्वितीय विश्व युद्ध को समझना और भी आवश्यक है क्योंकि अफगान लम्बे समय तक संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस दोनो महाशक्तियों का शिकार रहा है।
मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ