फलका प्रखंड में चौरचन पर्व चांद को अर्ध देकर हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।
कटिहार फलका
संवाददाता अमर कुमार गुप्ता की रिपोर्ट
कटिहार जिला के फलका प्रखंड मैं चौठचंद्र पर्व (चौरचन) मिथिला का एक ऐसा त्योहार है, जिसमें चांद की पूजा बड़ी धूमधाम से होती है। जो हर्षोल्लास के साथ मनाया गया ।मिथिला की संस्कृति में सदियों से प्रकृति संरक्षण और उसके मान-सम्मान को बढ़ावा दिया जाता रहा है। मिथिला के अधिकांश पर्व-त्योहार मुख्य तौर पर प्रकृति से ही जुड़े होते हैं, चाहे वह छठ में सूर्य की उपासना हो या चौरचन में चांद की पूजा का विधान। मिथिला के लोगों का जीवन प्राकृतिक संसाधनों से भरा-पूरा है, उन्हें प्रकृति से जीवन के निर्वहन करने के लिए सभी चीजें मिली हुई हैं और वे लोग इसका पूरा सम्मान करते हैं। इस प्रकार मिथिला की संस्कृति में प्रकृति की पूजा उपासना का विशेष महत्व है और इसका अपना वैज्ञानिक आधार भी है।
मिथिला में गणेश चतुर्थी के दिन चौरचन पर्व मनाया जाता है। कई जगहों पर इसे चौठचंद्र नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मिथिलांचल के लोग काफी उत्साह में दिखाई देते हैं। लोग विधि-विधान के साथ चंद्रमा की पूजा करते हैं। इसके लिए घर की महिलाएं पूरा दिन व्रत करती हैं और शाम के समय चांद के साथ गणेश जी की पूजा करती हैं।
सूर्यास्त होने और चंद्रमा के प्रकट होने पर घर के आंगन में सबसे पहले अरिपन (मिथिला में कच्चे चावल को पीसकर बनाई जाने वाली अल्पना या रंगोली) बनाया जाता है। उस पर पूजा-पाठ की सभी सामग्री रखकर गणेश तथा चांद की पूजा करने की परंपरा है। इस पूजा-पाठ में कई तरह के पकवान जिसमें खीर, पूड़ी, पिरुकिया (गुझिया) और मिठाई में खाजा-लड्डू तथा फल के तौर पर केला, खीरा, शरीफा, संतरा आदि चढ़ाया जाता है।
घर की बुजुर्ग स्त्री या व्रती महिला आंगन में बांस के बने बर्तन में सभी सामग्री रखकर चंद्रमा को अर्पित करती हैं, यानी हाथ उठाती हैं। इस दौरान अन्य महिलाएं गीत गाती हैं ‘पूजा के करबै ओरियान गै बहिना, चौरचन के चंदा सोहाओन।’ यह दृश्य अत्यंत मनोरम होता है। चौरचन पर्व मनाने के पीछे जो कारण है, वह अपने किसी भी त्योहार को मनाने के पीछे एक खास मनोवृति या मनोविज्ञान होता है जो किन्हीं कारणों से गाढ़ा जाता है मिथिला में चौरचन मनाए जाने के पीछे भी एक खास तरह की मनोवृति
थी छिपी हुई है। माना जाता है कि इस दिन चांद को शाप दिया गया था । इस कारण इस दिन जिस दिन चांद को देखने से कलंक लगने का भय होता है परंपरा से यह कहानी प्रचलित है कि गणेश को देखकर चांद ने अपनी सुंदरता पर भ्रमण करते हुए उनका मजाक उड़ाया इस पर गणेश ने क्रोधित होकर उन्हें यह शराब दिया की चांद को देखने से लोगों को समाज से कलंकित होना पड़ेगा इस साफ से मल मलिक होकर चांद खुद को छोटा महसूस करने लगा शॉप से मुक्ति पाने के लिए चांदने भाद्र मास जिसे भादो कहते हैं की चतुर्थी तिथि को गणेश पूजा की तब जाकर गणेश जी ने कहा जो आज की तिथि में चांद की पूजा साथ में मेरी पूजा करेगा उसको कलंक नहीं लगेगा तब से यह प्रथा प्रचलित है चोर चंद पूजा यहां के लोग सदियों से इसी अर्थ में मनाते आ रहे हैं पूजा में शरीक सभी लोग अपने हाथ में कोई न कोई फल जैसे खिरा व केला रखकर आराधना एवं दर्शन करते हैं ।चैठचंद्र की पूजा के दौरान मिट्टी के विशेष जिसे मैथिली में अथरा वकहते हैं ।दही जमाया जाता है ।इस दही का स्वाद विशिष्ट एवं अपूर्व होता है। चांद की पूजा सभी धर्मों में है ।मुस्लिम धर्म में चांद का काफी महत्व है। इसे अल्लाह का रूप माना जाता है ।अमुक दिन चांद जब दिखाई देता है तो ईद की घोषणा की जाती है ।चांद देखने के लिए लोग काफी व्याकुल रहते हैं। मिथिला में हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मावलंबियों के बीच गजब का सामान्य है ।यही कारण है ।कि यहां कभी कोई दंगा फसाद की खबर सिर जीत नहीं होती है । न हो सकता है ।कि धार्मिक आधार कहीं न कहीं एक दूसरे के साथ समन्वय बनाने में मदद करता हो चांद की रोशनी से शीतलता मिलती है इस रोशनी को इंजुरिया चांदनी भी कहते हैं।